पटना,१६ दिसम्बर। एक संपादक को सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों से मुक्त और लोक-मंगल की भावना से परिपूर्ण होना चाहिए। ऐसा ही संपादक समाचार, विचार, व्यक्ति और समाज के साथ न्याय कर सकता है। उसे पक्षपात से बचना और सत्य के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। पक्ष लेना और पक्षपात करना, दोनों ही भिन्न बातें हैं। सत्य के पक्ष में आने के लिए, सत्य को संपूर्णता में जानना आवश्यक है। आधा-ज्ञान भी एक पक्ष का सत्य हो सकता है, किंतु संभव है कि उसी का दूसरा भाग कुछ और प्रतिपादित करता हो। इसीलिए किसी विषय, बस्तु अथवा व्यक्ति के संबंध में संपूर्ण सूचना रखना और उसका सम्यक् मूल्याँकन कर प्रकट करना न्यायपूर्ण संपादन है।यह बातें गुरुवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में साहित्यिक समाचारों की त्रैमासिक पत्रिका ‘नया भाषा भारती संवाद’ के २२वें वर्ष के तीसरे अंक का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने पत्रिका के दुर्घायुष्य की मंगल कामना करते हुए, राष्ट्र-भाषा हिन्दी के प्रति पूरे देश में जागृति फैलाने में इसकी भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि देश में एक राष्ट्र-ध्वज और एक राष्ट्र-चिन्ह की तरह एक ‘राष्ट्र-भाषा’ होनी चाहिए। प्रांतों की भाषाएँ अलग-अलग हों, तो कोई बात नहीं पर देश की भाषा एक ही होनी चाहिए!सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिव वंश पाण्डेय ने कहा कि देश में साहित्यिक पत्रिकाओं की आयु लम्बी नही रही। भारतेंदु द्वारा प्रकाशित पत्रिका’हरिश्चन्द्र चंद्रिका’ से लेकर अबतक का अनुभव यही सिद्ध करता है। इस दृष्टि से ‘नया भाषा भारती संवाद’ की आयु संतोषप्रद कही जा सकती है, जो नियमित प्रकाशन का २३ वर्ष पूरा करने जा रही है।समारोह के मुख्य अतिथि और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी श्यामजी सहाय ने कहा कि अपनी निरंतरता और सारगर्भित सामग्रियों के कारण लोकार्पित पत्रिका राष्ट्रीय स्तर प्राप्त कर चुकी है और इसकी लोकप्रियता भी पूरे देश में है।पत्रिका के प्रधान संपादक और सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने पत्रिका के पाठकों के प्रति अपना हार्दिक आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि, जिस प्रकार देश भर के हिन्दी प्रेमी पाठकों ने, विशेष कर दक्षिण-भारत के हिन्दी-प्रेमियों ने इस पत्रिका का हृदय से स्वागत किया है और अपनी रचनात्मक प्रतिक्रिया दी है,उससे पत्रिका परिवार को बड़ा हीं प्रोत्साहन और उत्साह प्राप्त हुआ है। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, कुमार अनुपम, डा शालिनी पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, शमा कौसर ‘शमा’, डा सुधा सिन्हा, कृष्ण रंजन सिंह, डा ओंकार निराला, जय प्रकाश पुजारी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा मनोज कुमार, ब्रह्मानंद पाण्डेय तथा चितरंजन भारती ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत पत्रिका के सह-संपादक बाँके बिहारी साव ने, मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन पत्रिका के प्रबंध संपादक प्रो सुखित वर्मा ने किया।इस अवसर पर, डा नागेश्वर यादव, डा आर प्रवेश, अर्जुन प्रसाद सिंह, राज किशोर झा, अरुण कुमार श्रीवास्तव, हिमांशु शेखर, अमन वर्मा,अमित कुमार सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।