पटना, २६ दिसम्बर। बिहार के युवा साहित्यकार आशा के वो नवल कुसुम हैं, जिन पर हिन्दी साहित्य को बहुत आशाएँ हैं। इनकी ही उत्साहित ऊर्जा से साहित्य और समाज में गुणात्मक परिवर्तन होगा। युवाओं को दिखावे और नक़ल से बचते हुए, अपने भीतर की आत्मा के सौंदर्य को सामने लाना होगा। हृदय की भाषा में हृदय की बात निकलेगी तो हृदय तक पहुँचेगी।यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन की युवा साहित्यकार परिषद के तत्त्वावधान में आयोजित ‘युवा साहित्यकार महोत्सव का उद्घाटन करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि समाज में किसी भी प्रकार का परिवर्तन केवल और केवल साहित्य ही कर सकता है। साहित्य समाज का दर्पण भर नहीं, बल्कि समाज का निर्देशक भी है। उसमें समाज को बदलने की क्षमता होती है।महोत्सव की अध्यक्ष और सुप्रसिद्ध कथा-लेखिका डा उषा किरण खान ने कहा कि युवाओं में साहित्य के प्रति उत्साह देख कर मन को बहुत प्रसन्नता होती है। युवाओं को साहित्य में अपना अधिकतम योगदान देना चाहिए। युवाओं में समाज को बदलने की असीम सहकती होती है। इसका सदुपयोग करना चाहिए। उन्हें परिणाम की चिंता किए विना सृजन के कार्य में पूरे मन से लग जाना चाहिए।’साहित्य में युवाओं की भूमिका’ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए, वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक और कवि डा कुमार वरुण ने युवा साहित्यकारों के योगदान की विस्तृत चर्चा की तथा कहा कि साहित्य जीवन, समाज, संस्कृति और राजनीत का रेखांकन है। आज के युवा साहित्य और संस्कृति से उतना हीं जुड़ाव महसूस करते हैं, जितना कि तकनीक से । उन्हें नव-लेखन के लिए अग्रसर होना चाहिए। इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन में काव्य-पाठ करते हुए, आयोजन के मुख्य अतिथि और बिहार सरकार में विशेष सचिव कवि दिलीप कुमार ने वर्षा के ज़रिए अपनी बात कही कि ” बरस-बरस के पूछ रही बारिश मूसलाधार/ कहाँ गई काग़ज़ की कश्ती, किधर है खेवन हार? शायर समीर परिमल का कहना था कि “सरफ़रोशों का इक कारवाँ चाहिए/ हमको कदमों तले आसमां चाहिए/आइए दिल मिलाकर सफ़र को चलें/ हौसलों की नई दास्तां चाहिए/”वरिष्ठ कवयित्री और समारोह की विशिष्ट अतिथि डा भावना शेखर ने साहस और दुस्साहस को परिभाषित करते हुए कहा कि “दुस्साहस है मछलियों पर जाल डालना/ कुदरत की दुपट्टा खींच लेना/ तितलियों के पर कतर देना/ प्रेम पर पहरा बिठाना”। कौलेज औफ़ कौमर्स में हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक डा अजय कुमार, कैमूर के आलोक रंजन, दरभंगा से भास्कर झा, जमशेदपुर की निवेदिता श्रीवास्तव, सुनीता बेदी तथा उपासना ससिंहा, बेगूसराय के अरमान आनंद, गया की रानी मिश्रा तथा पंकज कुमार अमन, जहानाबाद के नंदन मिश्र, संतोष सागर तथा संतोष कुमार, छपरा के पीयूष रंजन आज़ाद,राकेश विद्यार्थी तथा शिवम् राज सिंह चंदेल, मधुबनी की श्वेता कर्ण, समस्तीपुर की अर्चना चौधरी, सीतामढ़ी की प्रीति सुमन, मुकेश सत्यांश तथा पंकज कुमार, मुज़फ़्फ़रपुर के अमीर हमज़ा, नालंदा की अपलना आनंद, कुमार राकेश ऋतुराज तथा नवनीत कृष्ण, वैशाली के प्रीतम कुमार झा तथा सुशील चौधरी, लखी सराय के अभिमन्यु प्रजापति, सीवान की कुमारी इला कृति समेत अनेक कवियों और कवयित्रियों ने अपने काव्य-पाठ से सम्मेलन की दीवारों को पूरा दिन गुंजायमान रखा।
अतिथियों का स्वागत परिषद के प्रधानमंत्री पंकज प्रियम ने, धन्यवाद ज्ञापन उपाध्यक्ष आनंद मोहन झा तथा मंच का संचालन श्वेता मिनी ने किया। इस अवसर पर उपरोक्त युवा कवियों और कवयित्रियों के अतिरिक्त चर्चित युवा कवि कुंदन आनंद, चंद्रबिंदु सिंह ‘चंद्रविंद’, अमृतेश कुमार, राम श्रींगार मैलक, अंकेश कुमार, रेखा भारती, रश्मि गुप्ता, डा कुंदन लोहानी, अंकित मौर्या, डा अनीता श्रीवास्तव, ईशिका राज, सुप्रशांत सिंह मोहित तथा रवि किशन शिवा को ‘युवा साहित्यकार सम्मान’ से अलंकृत किया।
ससरन ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा बृजेंद्र कुमार सिन्हा, कवि रामयतन यादव, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, नम्रता कुमारी, हृदय नारायण झा, अरुण कुमार श्रीवास्तव, कृष्ण रंजन सिंह, डा अलका वर्मा, प्रणव कुमार समाजदार, जयदेव मिश्र, पूजा ऋतुराज, पंकज कुमार झा, सुरेंद्र चुधरी आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।