पटना, ६ जनवरी। नृत्य के ऋषि आचार्य थे डा नगेंद्र प्रसाद ‘मोहिनी’। नई पीढ़ी को नृत्य में प्रशिक्षित करने तथा नृत्य-साहित्य के लेखन में उनका महान अवदान है। उनका संपूर्ण व्यक्तित्व मोहक था। वे तन, मन और विचारों से भी सुंदर और गुणी कलाकार तथा विश्रुत आचार्य थे। कलामंत्री के रूप में उन्होंने सम्मेलन को जो सेवाएँ दीं, वह अपूर्व और अद्वितीय है।यह बातें बुधवार को, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि कला, संगीत और साहित्य मानव-जीवन का महत्वपूर्ण पाथेय है। इनके अभाव में जीवन सुखदायी नहीं हो सकता। मोहिनी जी ऐसे लोगों में थे, जिन्होंने जीवन के इस मूल तत्व को अपने जीवन में उतारा था। उन्होंने संगीत साहित्य पर अनेक पुस्तकें भी लिखीं।समारोह के मुख्य अतिथि और दूरदर्शन केंद्र हिसार (हरियाणा) के केंद्र निदेशक डा राज कुमार नाहर ने कहा कि गायन, वादन और नर्तन संगीत के तीन प्रमुख अंग हैं। मोहिनी जी बिहार में नृत्य के पुरोधा थे। उन्होंने अनेक पीढ़ियों को नृत्य की शिक्षा दी। वे बड़े मृदु-भाषी और सबसे प्रेम करने वाले संगीत मनीषी थे। डा बी एन विश्वकर्मा, प्रभास पाठक, रामाशीष ठाकुर, चंद्रशेखर आज़ाद तथा अमीरनाथ शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ गीतों के चर्चित कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने इन पंक्तियों से किया कि “शमां तो जलती जाती है/ परवाना तिल तिल जलता/ ये दुनिया वाले क्या जानें/ कैसे आशिक़ का दिल जलता”। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद का कहना था कि “मरने के जब हज़ार बहाने थे मेरे पास / जीने के तब भी कुछ तो ठिकाने थे मेरे पास” । कवयित्री रेखा भारती मिश्र, कुमार अनुपम, कमल किशोर ‘कमल’, अशोक कुमार, चितरंजन भारती, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का प्रभावशाली पाठ किया। मंच का संचालन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।