पटना, ८ जनवरी। बाल-साहित्य में हिन्दी के लेखकों की स्याही निरंतर कम होती जा रही है। हिन्दी में इसे एक बड़े अभाव के रूप में देखा जा रहा है। बहुत थोड़े से रचनाकार इस दिशा में कुछ पग बढ़ाते दिख रहे हैं। ऐसे में विदुषी कवयित्री रेखा भारती मिश्र की चेष्टाएँ अत्यंत प्रशंसनीय और श्लाघ्य है। बाल-मनोविज्ञान का यथेष्ट बोध रखने वाली इस कवयित्री में इस अभाव की पूर्ति की पर्याप्त संभावनाएँ दिखाई देती है।यह बातें शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, ऊर्दू और हिन्दी के महान शायर शाद अजीमाबादी की जयंती पर, कवयित्री रेखा भारती के तीन काव्य-संग्रहों ‘नटखट नंद गोपाल’, ‘जग में नाम कमाएँगे’ तथा ‘इंद्र धनुष’ का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि रेखा भारती की कविताओं में सरलता भी है और वांछित सरसता और छंद भी। बच्चें इसे सरलता से पढ़,समझ और कंठस्थ भी कर सकते हैं। काव्य-संग्रह ‘इंद्र धनुष’ में कवयित्री ने अपने भावों के विविध रंगों और रस की अभिव्यक्ति की है। ‘शाद’ को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि मीर और ग़ालिब के समकालीन शायरों में बिहार के इस नायाब हीरे शायरे-आज़म अली मोहम्मद ‘शाद’ का एक बड़ा मक़ाम था। मीर और ग़ालिब भी उन्हें बहुत ही श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। उनकी शायरी में जितनी सरलता है, भाव और विचार उतने ही गहन-गम्भीर हैं। वे एक महान शायर और बड़े दिल के उदार समाजसेवी भी थे।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, कवि बच्चा ठाकुर, डा अशोक प्रियदर्शी, पूनम आनंद, डा शालिनी पाण्डेय, विभा रानी श्रीवास्तव, डा अर्चना त्रिपाठी, श्वेता मिनी तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने इन पंक्तियों को मधुर स्वर देकर किया कि”मुद्दत हुई मुझको किसी को कुछ दिए हुए/ मुझको मेरी दरियादिली को कौन ले गया!अख़लाक़ से लबरेज़ बस्तियों से पूछिए/ मेहमान था जो अजनबी को कौन ले गया?”लोकार्पित पुस्तकों की कवयित्री रेखा भारती ने ‘इंद्र धनुष’ से ‘पिता’ शीर्षक कविता का पाठ करते हुए कहा “पसीने को बहाकर ख़ूब वो रोटी कमाते हैं/ लहू से सींच कर हर ईंट को, वो घर बनाते हैं/ हमारी इक ख़ुशी के वास्ते हर ग़म उठाएँ वो/ हमारे प्यार के दो बोल पर जीवन लुटाते हैं”। वरिष्ठ शायर नाशाद औरंगाबादी का कहना था कि “राज की बात वो ग़ैरों को बता देता है/ इस तरह मेरी वफ़ाओं का सिला देता है/ माँगने वाले को मिला है, मगर है यह भी/ जो नहीं माँगता उसको भी ख़ुदा देता है।” वरिष्ठ कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, मोईन गिरीडीहवी, ई अशोक कुमार, मसलेह उद्दीन काजिम, ललन प्रसाद, कमल किशोर कमल, माधुरी भट्ट, अभिलाषा कुमारी, इन्दु उपाध्याय, लता प्रासर, सिंधु कुमारी, डा मोहम्मद असलम, सार्थक और किसलय ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालनकवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।आयोजन में कवयित्री प्रेमलता सिंह राजपुत, डा कौशल कुमार मिश्र, डा सुषमा कुमारी, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, हिमांशु दूबे, अमीरनाथ शर्मा, चंद्रशेखर आज़ाद, अमन वर्मा, चंद्रशेखर आज़ाद आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।