जितेन्द्र कुमार सिन्हा, दिल्ली ब्यूरो ::हिन्दू के प्रमुख त्योहारों में एक है ‘‘मकर संक्रांति’’। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरिकों से और अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। केरल, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में मकर संक्रांति को ‘‘संक्रांति’’, तमिलनाडू में ‘‘पोंगल’’, पंजाब और हरियाणा में ‘‘लोहड़ी’’ और वहीं आसाम में ‘‘बिहू’’ के रूप में मनाया जाता है।मकर संक्रांति के दिन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की उपासना एवं अराधना किया जाता है, इसलिए हिन्दू धर्म में इसे महापर्व कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य उत्तरायण हो कर मकर रेखा से गुजरता है तब मकर संक्रांति मनाया जाता है। मकर संक्रांति का सीधा संबंध पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से होता है, जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है तो उस दिन 14 जनवरी ही होता है, इसलिए मकर संक्रांति का त्योहार प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान का दान दिया था, महाभारत कथा के अनुसार भीष्म पीतामह ने मकर संक्रांति के दिन ही अपने शरीर का त्याग किया था, जबकि सामान्यतः यह माना जाता है कि इसी दिन से ऋतु परिवर्तन होता है और सर्दियों से गर्मी की ओर मौसम परिवर्तन होता है, इसलिए मकर संक्रांति के दिन से वसंत ऋतु की शुरूआत होने लगता है। मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से शुभ कार्य यथा विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि कार्य शुरू होते हैं।पंचागों के अनुसार इस वर्ष सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी, 2022 को अपराह्न 2 बजकर 29 मिनट पर होगा और मकर संक्रांति का पुण्य काल 2 बजकर 43 मिनट से शाम 5 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इसकी बात की पुष्टि मिथिला पंचांग भी करता है कि सूर्य धनु से मकर राशि में 14 जनवरी को ही प्रवेश करेगा, इसलिए मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनाया जाना शास्त्र संगत होगा। जबकि बनारस पंचांग के अनुसार उदयातिथि में संक्रांति मनाने का तर्क देते हैं और उदयातिथि के अनुसार 15 को मकर संक्रांति मनाने का परामर्श दिया जा रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन इस वर्ष सूर्य से द्वितीय एवं द्वादश भाव में गुरू एंव शुक्र के रहने से उभयचर योग और चंद्रमा से दशम भाव में गुरू जैसे शुभ ग्रह के रहने से अमला योग बन रहा है और यह दोनों योग श्रद्धालुओं के लिए शुभ है।मकर संक्रांति के दिन से प्रतिदिन “दिन लंबे” और “रात छोटी” होने लगती है। सूर्य का किसी राशि विशेष में भ्रमण करना संक्रांति कहलाता है। सूर्य प्रत्येक माह में राशि परिवर्तन करता है इसलिए एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियाँ होती है। देवीपुराण में संक्रांति काल के संबंध में बताया गया है कि स्वस्थ एवं सुखी मनुष्य जब एक बार पलक गिराता है तो उसका तीसवां भाग तत्पर कहलाता है, तत्पर का सौंवां भाग त्रुटि कहा जाता है तथा त्रुटि के सौंवे भाग में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारो ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारो ओर घुमकना क्रांतिचक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बांटकर बारह राशियाँ बनी है। लेकिन वर्ष में दो संक्रान्तियाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। एक मकर संक्रांति और दूसरा कर्क संक्रांति। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति मनाया जाता है। इस समय सूर्य उत्तरायण होता है और सूर्य की गर्मी शीत के प्रकोप एवं शीत के कारण होने वाले रोगों को समाप्त करने की क्षमता रखती है। इसलिए इस दिन से सूर्य की किरणें औषधि की तरह काम करने लगती है।इस वर्ष मकर संक्रांति के दिन होने वाले ग्रहों की चाल के अनुसार कर्क राशि वाले लोगों के लिए शुभ, सिंह राशि वालों के लिए पुराने विवादों से छुटकारा और लाभ का योग, तुला राषि वालों को बड़ा लाभ, वृश्चिक राशि वालों की आर्थिक स्थिति में सुधार और कुभ राशि वालों को सुख सुविधाओं में वृद्धि होगी, ऐसा माना जा रहा है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन स्नानादि करने के बाद गुड़, घी, नमक और तिल के अतिरिक्त काली उड़द की दाल और चावल दान करना चाहिए। उड़द के दाल की खिचड़ी खानी चाहिए। कहा जाता है कि खिचड़ी खाने से सूर्य देव और शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। बाबा गोरखनाथ के समय से ही खिचड़ी बनाने की प्रथा शुरू हुई थी। इसकी भी एक कहानी है कि जब खिलजी ने देश पर आक्रमण किया था तब नाथ योगियों को युद्ध के समय भोजन तैयार करने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे-प्यासे युद्ध के लिए निकल जाते थे। उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियां एक साथ पकाने की सलाह दी थी। यह खाना जल्दी तैयार हो जाता था और योगियों का पेट भी भर जाता था और साथ ही काफी पौष्टिक भी होता था। तत्काल तैयार किए जाने वाले इस भोजन का नाम खिचड़ी बाबा गोरखनाथ ने ही रखा था। खिलजी से मुक्त होने के बाद योगियों ने जब मकर संक्रांति पर्व मनाया था तो उस दिन भी सभी को खिचड़ी का ही वितरण किया था। तभी से मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा शुरू हो गई। आज भी गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर खिचड़ी मेले का आयोजन होता है और परसादी के रूप में खिचड़ी बांटी जाती है।यह भी मान्यता है कि उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से सूर्यदेव और शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। उसी प्रकार चावल चन्द्रमा का कारक, नमक शुक्र, हल्दी गुरू बृहस्पति, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है। खिचड़ी की गर्मी का संबंध मंगल से और मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में करीब-करीब सभी ग्रहों की स्थिति बेहतर होगी ऐसी मान्यता है।