पटना, १८ जनवरी। हिन्दी भाषा के उन्नयन में भारत के जिन महापुरुषों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, उनमें एक महान नाम डा लक्ष्मी नारायण सिंह ‘सुधांशु’ जी का भी है, जो बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी थे और बिहार विधान सभा के भी अध्यक्ष रहे। वे, राजनीति और साहित्य, दोनों के आदर्श व्यक्तित्व थे। राजनीति में उनका आदर्श ‘महात्मा गांधी’ और हिन्दी-सेवा में उनका आदर्श ‘राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन’ थे। ‘राजनीति’ और ‘हिन्दी’, उनके लिए ‘देश-सेवा’ की तरह थी। गांधी के विचारों में पगे, वे एक संपूर्ण सारस्वत राजनैतिक व्यक्तित्व थे।यह बातें,मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सुधांशु जी की जयंती एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, स्वतंत्र-भारत की सरकार की राज-काज की भाषा ‘हिन्दी’ हो, इस विचार और आंदोलन के वे देश के अग्रिम-पंक्ति के नायक थे। डा सुलभ ने विदुषी लेखिका डा सुषमा कुमारी की पुस्तक ‘तुलसी के जीवनीपरक हिन्दी उपन्यासों में कथ्य और शिल्प’ का लोकार्पण भी किया। पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि लेखिका ने लोकनायक महाकवि तुलसी के जीवन पर आधृत तीन बहुचर्चित उपन्यासों अमृत लाल नागर रचित ‘मानस का हंस’, रांगेय राघव रचित ‘रत्ना की बात’ तथा आचार्य सोहनलाल रामरंग रचित ‘युग पुरुष तुलसी’ पर बहुत ही वैदुष्यपूर्ण और शोधपूर्ण विमर्श किया है तथा उनमे प्रयुक्त कथ्य और शिल्प की विशद विवेचना भी की है। लोकार्पित पुस्तक से तुलसी के संपूर्ण जीवन-चरित्र को समझने की व्यापक दृष्टि मिलती है।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, सुधांशु जी के हृदय में, हिन्दी का स्थान क्या था, यह इसी से समझा जा सकता है कि, जब किसी ने उनसे यह पूछा कि, यदि उन्हें छोड़ना पड़े तो, वे बिहार विधान सभा के अध्यक्ष का पद छोड़ना चाहेंगे या ‘हिन्दी प्रगति समिति’ के अध्यक्ष का पद, तो उनका उत्तर था “यदि मुझे चुनना होगा तो, बिहार विधान सभा के स्थान पर ‘हिन्दी प्रगति समिति’ का अध्यक्ष बना रहना चाहूँगा।”लोकार्पित पुस्तक की लेखिका डा सुषमा कुमारी ने कहा कि मेरी अभिलाषा थी कि मेरी पुस्तक का लोकार्पण बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हो, जो आज पूरी हुई है। हिन्दी साहित्य में महाकवि तुलसी का स्थान एक लोकनायक महान संतकवि का है। उनके जीवनीपरक उपन्यासों का अध्ययन करते और उन पर लिखते हुए मुझे अनेक सुखद अनुभूतियाँ हुई और मेरा जीवन सार्थक हुआ। डा बी एन विश्वकर्मा, लेखिका के पति हिमांशु दूबे, चंद्रशेखर आज़ाद, अमन वर्मा, दिनेश्वर तथा रामाशीष ठाकुर ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। गीत के चर्चित कवि डा ब्रह्मानंद पाण्डेय ने अपने इस गीत को मधुर स्वर से सजाया कि “तुम ढूँढ़ों अपने चाँद को आकाश में/ मेरा चाँद तो मेरे पास है”।वरिष्ठ कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, डा अर्चना त्रिपाठी, डा शालिनी पाण्डेय, डा कुंदन कुमार, डा नूतन कुमारी सिन्हा, डा संजू कुमारी तथा शिवानंद गिरि ने भी अपनी रचनाओं का सरस पाठ किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन और नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ ने किया।