पटना, २३जनवरी। अपने समय में ‘भावुक कवि’ के रूप में चर्चित और सम्मानित रहे पं जनर्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ छायावाद-काल के एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि और मूल्यवान कथाकार थे। महाकवि जयशंकर प्रसाद और कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र से उनका बहुत निकट का सान्निध्य रहा। यही कारण था कि उनके साहित्य पर इन दोनों ही महान साहित्यकारों का गहरा प्रभाव था। वे अपने समय के अग्र-पांक्तेय कथाकार तथा एक महान आचार्य भी थे। वे राजेंद्र कौलेज, छपरा में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष और बाद में पूर्णिया कालेज की स्थापना के समय से अपनी मृत्यु तक, उसके प्राचार्य रहे। यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-सह-पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि महान हिन्दी-सेवी डा लक्ष्मी नारायण ‘सुधांशु’ का द्विज जी से बहुत ही आत्मीय लगाव था। उनके ही आग्रह पर द्विज जी पूर्णिया गए। हिन्दी की अमूल्य सेवा के लिए वे सदैव याद किए जाते रहेंगे। वे सादा जीवन और उच्च विचार के प्रतीक-पुरुष थे।डा सुलभ ने चर्चित युवाकवि और यूनियन बैंक में राजभाषा अधिकारी डा विजय कुमार पाण्डेय के काव्य-संग्रह ‘अकेलापन’ का लोकार्पण भी किया। पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि लोकार्पित पुस्तक के कवि हिन्दी के प्रति अकुंठ आस्था रखनेवाले प्रतिभा-संपन्न कवि हैं। अपने काव्य-संग्रह ‘अकेलापन’ में कवि ने मानव मन की पीड़ा की ही नहीं आकांक्षा और सपनों की भी अभिव्यक्ति की है। डा पाण्डेय अंधकार में प्रकाश की खोज करने वाले इस समय के महत्त्वपूर्ण कवि हैं।समारोह के मुख्यअतिथि और यूनियन बैंक के उप महाप्रबंधक अजय बंसल, कवि के पिता ललन पाण्डेय, बैंक के सहायक महाप्रबंधक शैलेंद्र कुमार, सावन शिव, डा बी एन विश्वकर्मा, बाँके बिहारी साव तथा डा अर्चना त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।लोकार्पित पुस्तक के कवि डा विजय कुमार पाण्डेय ने कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। ‘हमने जनाज़े को मुस्कुराते हुए देखा है’ शीर्षक कविता पढ़ते हुए कहा- “चौंकिए मत, संभल जाइए/ अभी भी समय है, निकल जाइए/ हमने हैवानियत को इतराते देखा है/ हमने जनाज़े को मुस्कुराते हुए देखा है”।द्विज जी की स्मृति को कवियों और कवयित्रियों ने भी विनम्र काव्यांजलि दी। कवि-सम्मेलन का आरंभ कवि हृदय नारायण झा की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने स्वर से अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि “रोशनी के नाम पर कैसा ये फेरा हो गया/ बत्तियाँ गुल हो गयीं, गहरा अंधेरा हो गया/ रात हो या दिन, सुबह या शाम हो या दोपहर/ खुल गयी जब आँख जब जागा सबेरा हो गया”। डा शंकर प्रसाद का कहना था कि, “आँखों में जितनी आग तेरी है वो कम नहीं/ इस शहरे-बेचिराग में जलता तो है कोई”।छंद के लोकप्रिय कवि डा ब्रह्मानंद पाण्डेय ने कहा “अब ज़िक्र है ज़रूरी, प्यार के मुकाम का/ ठिकाने जो गुलज़ार थे शमशान बन गए”। ओज के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ने नसीहत दी कि “दमकना फिर से जो चाहते हो तो भट्ठी में पहे खद को गला लेना/ और बाद को लगे कभी बाज़ार में अपने को प्रकाश चला लेना”।वरिष्ठ कवि डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शलिनी पाण्डेय, लता प्रासर, डा सुषमा कुमारी, चितरंजन भारती, डा धर्मेंद्र कुमार धीर, आलोक सुमन दूबे, राशिद आज़म, मोईन गिरीडीहवी, मसलेह उद्दीन काजिम, अमृता प्रकाश तथा नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।