पटना, २८ जनवरी। कथा-साहित्य और काव्य-लालित्य के लिए सुविख्यात साहित्यकार पं प्रफुल्ल चंद्र ओझा ‘मुक्त’ अपने समय के अत्यंत महत्त्वपूर्ण साहित्यिक-हस्ताक्षर थे। साहित्य की सभी विधाओं में उन्होंने अधिकार पूर्वक लिखा। उनकी भाषा बहुत हीं प्रांजल और मुग्धकारी थी। उनके गद्य में भी कविता का लालित्य और माधुर्य देखा जा सकता है। दूसरी ओर, ‘साहित्य-सारथी’ के रूप में सुख्यात मनीषी हिन्दी-सेवी बलभद्र कल्याण सांस्कृतिक जागरण के ध्वज-वाहक थे। आज से दो दशक पूर्व, जिन दिनों बिहार की राजधानी पटना में साहित्यिक गतिविधियों पर विषाद का ताला पड़ गया था, जिन दिनों साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र रहे, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने भी मौन धारण कर लिया था, तब साहित्य-सारथी बलभद्र कल्याण ने अपने द्विचक्री-रथ पर आरूढ़ होकर नगर में साहत्यिक चुप्पी को तोड़ा और एक नवीन सारस्वत-आंदोलन का शंख फूँका था। यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, ‘मुक्त’ जी और कल्याण जी की जयंती पर आयोजित समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, मुक्त जी आकाशवाणी से भी सक्रियता से जुड़े रहे। वे मंचों की शोभा हीं नही विद्वता के पर्याय भी थे। उन्होंने आदिकवि महर्षि बाल्मीकि द्वारा संस्कृत में रचित विश्व-विश्रुत महाकाव्य ‘रामायण’ के हिन्दी में परिष्कृत अनुवाद का श्रम-साध्य प्रकाशन किया था, जो एक बड़ी उपलब्धि है। यह अनुवाद उनके विद्वान पिता साहित्याचार्य चंद्रशेखर शास्त्री ने किया था। इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। इसके पश्चात शेरों-सुख़न और कविताओं की धारा गए शाम तक बहती रही, जिसमें श्रोतागण डूबते उतराते रहे। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने जब अपनी ग़ज़ल की इन पंक्तियों को स्वर दिया कि “उनको हक़ तुम पर कसें चाहे वो जितनी फ़ब्तियां/ तुम अगर ऐसा करो उनको लगेगी मिर्चियाँ/ कोई क्या-क्या कर गुजर कर भी रहा गुमनाम ही/ कोई खाँसे छींक भी दे बन गई वो सुर्ख़ियाँ”, तो विशाल सभागार तालियों से गूंज उठा।डा शंकर प्रसाद ने तरन्नुम से यह ग़ज़ल पढ़ी कि, “बड़ा नादान है दिल आपका भी जो मुझे छेड़ कर पछता रहा है/ कोई साया न है आवाज़ ही कुछ मगर नज़दीक कोई आ रहा है”। गीत के लोकप्रिय कवि आचार्य विजय गुंजन ने मधुर स्वर से यह गीत पढ़ा कि “भोर के अनुराग रंजित पृष्ठ पर के गीत हो तुम/ हृदयतल में अनकही सी संचरित मधुप्रीत हो तुम”। ब्रह्मानंद पाण्डेय ने कहा – “ख्वाहिश ये जब, हो वो उदास उसके मन को बहलाऊँ/ उसके अश्क़ पी जाऊँ, उसके ज़ख्मों को सहलाऊँ”। वरिष्ठ शायर नाशाद औरंगाबादी का कहना था कि “तू चाहे तो आएगा सहरा में सैलाब/ वरना बातों-बात में हो दरिया बेआब।”वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा अर्चना त्रिपाठी, श्याम बिहारी प्रभाकर, अभिलाषा कुमारी, सुजाता वर्मा, मनोरमा तिवारी, पूजा ऋतुराज, सुजाता मिश्र, विनय कुमार तथा मोईन गिरीडीहवी ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं पर प्रभाव डालने में सफल रहे। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर, डा बी एन विश्वकर्मा, रामाशीष ठाकुर, आशीष कुमार सिन्हा, नरेंद्र कुमार झा, डा अरविंद कुमार, आनंद मोहन झा, चंद्रशेखर आज़ाद, अमन वर्मा, पवन सिंह, विनोद कुमार झा, कामेश्वर सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।