पटना, ३१ जनवरी। विकलांगजनों के पुनर्वास और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के वैश्विक-स्तर पर अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। तकनीकी विकास भी तेज़ी से हुआ है। पुनर्वासकर्मियों को आधुनिक उपकरणों और वैज्ञानिक-तकनीक से भी संपन्न किया जा रहा है। नई तकनीक वाले सहाय उपकरण विकलांगों की कार्यक्षमता में बेहतर और गुणात्मक वृद्धि हो रही है। आधुनिक उपकरणों की उपलब्धता और प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।यह बातें रविवार को भारतीय पुनर्वास परिषद, भारत सरकार के सौजन्य से बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एजुकेशन ऐंड रिसर्च में संपन्न हुए ३दिवसीय अंतर्रष्ट्रीय वेबिनार में विशेषज्ञों ने व्यक्त किए।संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस तीन दिवसीय सतत पुनर्वास प्रशिक्षण कार्यक्रम में अपना वैज्ञानिक पत्र प्रस्तुत करते हुए, किंग जौर्ज मेडिकल युनिवर्सिटी, लखनऊ के जेरीएटिक मेंटल हेल्थ विभाग के प्राध्यापक डा राकेश त्रिपाठी ने कहा कि सेंस कैम, इंटेलीजेंट ह्वीलचेयर, स्पीच सिंथेसिस सौफ़्टवेयर आदि कुछ ऐसे उपकरण हैं जिनसे विकलांगों की कार्य क्षमता में गुणात्मक विकास हुआ है।एस एस कौलेज, भोपाल के पुनर्वास विभाग में सहायक प्राध्यापिका डा रौली मिश्रा ने कहा कि ऐसेस्टिव डिवाइस दिव्यांगों को आत्म-निर्भर बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। समेकित पुनर्वास केंद्र, शिलौंग के सहायक प्राध्यापक डा प्रणामी बरुआ, एस के एम युनिवर्सिटी, दुमका में सहायक प्राध्यापक डा विनोद शर्मा, एस सी बी मेडिकल कौलेज, कटक, उड़ीसा की नैदानिक मनो-वैज्ञानिक डा चाँदनी मिश्रा, डा अन्वेशा मण्डल, डा नीरज कुमार वेदपुरिया, डा मुक्ता मृणालिनी तथा डा विजय भारती ने भी अपने वैज्ञानिक पत्र प्रस्तुत किए। वेबिनार के समन्वयक और हेल्थ इंस्टिच्युट के विशेष शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो कपिलमुनि दूबे,विशेष शिक्षक रजनीकांत एवं विनोद कुमार ने तकनीकी सहयोग किया। अंजलि मुस्कान तथा सोनाली कुमारी ने बारी-बारी से कार्यक्रम का संचालन किया।