पटना, ७ फरवरी। “पत्थरों को भी रुला जाएंगी / उन्हें सदियाँ भुला न पाएँगी / सुरों की थीं उनमें महादेवी / लता जी सदा याद आएँगी”, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने अपनी इन्हीं पक्तियों के साथ, भारतीय संगीत की अप्रतिम तपस्विनी और सुरों की महादेवी लता मंगेशकर की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में अपना शोकोदगार आरंभ किया। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए, उन्होंने कहा कि लताजी संगीत की दुनिया की एक ऐसी महादेवी हैं, जिनकी उपमा उनके सिवा कोई और नही हो सकती। उनके समक्ष संगीत के सभी आभूषण, अलंकरण और विशेषण छोटे हैं। उनके निधन पर क्या भारत, क्या पाकिस्तान सारी दुनिया शोकाकुल है। डा सुलभ ने कहा कि उनके मन की अभिलाषा मन में ही रह गई। वे लता जी को साहित्य सम्मेलन में बुलाना चाहते थे। सम्मेलन के गौरवशाली सौ वर्ष पूरा होने पर जो शताब्दी-समारोह आयोजित किया जाना था, और जो कोरोना महामारी के कारण अब तक आहूत नहीं किया जा सका है, उसमें उन्हें आमंत्रित किया जाना था। उन्होंने कहा कि साहित्य और संगीत में अन्योनाश्रय संबंध है। इसलिए मुझे विश्वास था कि वो हमारा आग्रह स्वीकार करेंगी। पर महाकाल ने हमें वह अवकाश ही नहीं दिया। लता जी को खोकर हमने अपना क्या-क्या गवान दिया है, यह समझने में भी भारत को सदियाँ लगेगी। सहस्राब्दियों में संसार को लता जैसी विभूतियाँ प्राप्त होती हैं। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि पूरा देश शोक में डूबा हुआ है। भारतीय संगीत और सिनेमा की यह सबसे बड़ी क्षति है। उन्होंने कहा कि उस जमाने के मशहूर गायक ग़ुलाम हैदर ने पहली बार लता जी की शक्ति को पहचाना और उन्हें अपना आशीर्वाद दिया। तब के संगीतकार सी रामचंद्र ने उनकी हुनर को पहचाना। लता जी अपने पहले ही गीत से फ़िल्म-जगत में छा गईं। उसके बाद की कथा तो सारी दुनिया को मालूम है। बीस हज़ार से अधिक लोकप्रिय गीत गानेवाली दुनिया की वो अमर गायिका हैं।वरिष्ठ लेखक डा शशिभूषण सिंह, डा ब्रह्मानन्द पाण्डेय, शायरा शमा कौसर ‘शमा’, डा शालिनी पाण्डेय, विभारानी श्रीवास्तव, सुनील कुमार दूबे, सुषमा साहू, निशा पाराशर, पूजा ऋतुराज, डा पंकज कुमार सिंह, डा अरविंद कुमार, श्रेया राज आदि ने भी अपने शोकोदगार व्यक्त करते हुए स्वर-कोकिला को श्रद्धांजलि दी।