पटना, १२ फरवरी। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में बिहार के मनीषी साहित्यकारों का योगदान अपूर्व है। किंतु साहित्य के इतिहास में इसे अपेक्षित स्थान नहीं मिला। अनेकों महान साहित्यकार आलोचकों की दृष्टि से, और इस प्रकार पाठकों की दृष्टि से अलक्षित रह गए। उनकी अत्यंत मूल्यवान कृतियाँ, प्रकाश के अभाव में, काल के अंधकार में विलीन हो गईं। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के विद्वान अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने अत्यंत श्रम और शोध कर लिखे गए अपने मूल्यवान ग्रंथ के माध्यम से इस एक बड़े अभाव की पूर्ति में अपना महनीय योगदान दिया है, जिसमें विगत अनेक पीढ़ियों के साहित्यकारों के महान अवदानों के साथ उनके जीवन-चरित पर भी प्रकाश डाला गया है।यह बातें, शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की पुस्तक ‘बिहार की गौरव गाथा’ का लोकार्पण करते हुए,बिहार की विदुषी उप मुख्यमंत्री रेणु देवी ने कही। उन्होंने कहा कि जिन साहित्यकारों ने अपना संपूर्ण जीवन हिन्दी को समर्पित कर दिया, उनके योगदान को हमें याद रखना चाहिए।समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने लेखक को बधाई देते हुए कहा कि साहित्य सम्मेलन से जुड़कर मुझे सदा गौरव की अनुभूति होती है। मुझे यहीं से प्रेरणा मिली कि स्वतंत्र भारत की राष्ट्र-भाषा हिन्दी हो, इस हेतु मैं भी अपना कुछ योगदान दे सकूँ। डा सुलभ की इस पुस्तक से हिन्दी साहित्य के इतिहास के पुनर्लेखन में पर्याप्त सामग्री प्राप्त होगी इस अवसर पर राज्य सभा के पूर्व सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र किशोर सिन्हा को साहित्य सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि ‘विद्या वाचस्पति’ के अलंकरण से विभूषित किया गया। अपने उद्गार में श्री सिन्हा ने कहा कि ‘हिन्दी के प्रणम्य पुरुष’ नामक पुस्तक का सृजन कर डा सुलभ ने बिहार के साहित्यिक पटल में बहुत बड़ा काम किया है। इस पुस्तक में बिहार के ३६साहित्यिक मनीषियों का जीवन चरित आया है। अनेक नाम अभी भी छूटे हुए हैं, जिन पर इस तरह का आलेख आना चाहिए।पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद, मधेपुरा विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा, बिहार गीत’ के रचयिता और हिन्दी प्रगति समिति, बिहार के अध्यक्ष कवि सत्य नारायण, सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा मेहता नगेंद्र सिंह आदि ने भी अपने उद्गार में लेखक के योगदान की चर्चा करते हुए, उन्हें बधाई दी।अतिथियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि हिन्दी साहित्य के इतिहास में बिहार के योगदान की घोर उपेक्षा हुई है। अपने प्राण देकर जिन साहित्यिक तपस्वियों ने आधुनिक हिन्दी को गुणवती और सौंदर्यवती बनाया उन्हें हमने विस्मृति के घोर अंध-गह्वर में छोड़ दिया है। उनमे से अनेकों का स्थान हिन्दी साहित्य के इतिहास के किसी पृष्ठ के हाशिए पर भी नहीं है। मैंने यह चेष्टा की है कि अपने मनीषी पूर्वजों और अग्रजों को इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित करूँ, जिसके वे सर्वथा अधिकारी थे। यह पुस्तक उस महान चेतना यात्रा की प्रथम कड़ी है। यह यात्रा जारी रहेगी।अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के विद्वान प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक का ऐतिहासिक महत्त्व है। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें संकलित सभी मनीषी विद्वानों का एक ही आलेख में संपूर्ण व्यक्तित्व और साहित्यिक अवदान को सामने रख दिया गया है। लेखक की भाषा सरस और शैली अत्यंत आकर्षक है, जो इसकी पठनीयता और उपयोगिता को बढ़ाती है। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर, वरिष्ठ कवयित्री आराधना प्रसाद, डा अर्चना त्रिपाठी, पूनम आनंद, डा शालिनी पाण्डेय, डा पुष्पा जमुआर , ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, शमा कौसर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा सुमेधा पाठक, डा सागरिका राय, विभा रानी श्रीवास्तव, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा बी एन विश्वकर्मा, मोईन गिरीडीहवी, जयप्रकाश पुजारी, श्रीकांत व्यास, बाँके बिहारी साव, मनोरमा तिवारी, अर्जुन सिंह, बच्चा ठाकुर, डा मुकेश कुमार ओझा, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा रेखा भारती, पुरुषोत्तम कुमार, पंकज प्रियम, डा नागेशवर प्रसाद यादव, डा मनोज कुमार, डा मीना कुमारी परिहार,माधुरी भट्ट, प्रेमलता सिंह, डा सुधा सिन्हा, डा ब्रह्मानन्द पाण्डेय, परवेज़ आलन, राज किशोर झा, श्वेता मिनी, डा सीमा यादव, चंदा मिश्र, अभिलाषा कुमारी, आनंद मोहन झा, डा नूतन सिन्हा, , समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।