पटना, २७ फरवरी। गत संध्या विश्व विद्यालय सेवा आयोग का सभागार एक नई अनुभूति का साक्षी हुआ। हास्य-व्यंग्य से लेकर, मीठी गुदगुदी और चुभन की अनुभूति करानेवाली और समाज को आइना दिखाने वाली कविताओं के फूल झड़ रहे थे। और यह सबकुछ कोई और नहीं आयोग के अध्यक्ष डा राजवर्द्धन आज़ाद के मुखारविंद से हो रहा था। आयोग के सदस्यगण और कर्मीगण ही नहीं, प्रदेश के विद्वान साहित्यकार और विदुषी कवयित्रियों ने भी डा आज़ाद के सम्मोहक कवि-रूप का साक्षात्कार किया, जो उन सबके लिए एक अभिनव और सुखद अनुभूति की तरह था। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित इस एकल काव्य-पाठ का आयोजन सबके मन में अनेक सुखानुभूति छोड़ गया।डा आज़ाद ने अपने काव्य-पाठ का आरंभ ‘कुर्सी’ शीर्षक वाली कविता से किया – “वो जो करते हैं तुम्हारी तारीफ़ आज/ वो ही कल तारूफ भूल जाएँगे/ मतलब की सियासत से जोड़ने में/ फिर से मशगूल हो जाएँगे”। वे काव्य की नई विधा ‘हाइकू’ से सामीप्य रखनेवाली छोटी कविताओं के साथ श्रोताओं से संवाद कर रहे थे। एक वैसी ही लघु-कविता से आज के हालात पर यों कटाक्ष किया कि “हवा थी हमारी/पानी था हमारा/ रौशनी हो गई गुल/ अंधेरा है सहारा/ पानी पानी हो गया / हवा हुई हवाई/ वबा में गुम गया/ अहबाब हमारा”। डा आज़ाद ने पौने घंटे के अपने काव्य-पाठ में अपनी दो दर्जन से अधिक प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया।कविताओं पर टिप्पणी करते हुए, आयोजन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि आज़ाद जी की कविताओं से गजरते हुए उन्हें चकित करने वाली सुखद अनुभूति हुई। वे जितने बड़े नेत्र-रोग विशेषज्ञ हैं, उससे कम बड़े कवि भी नहीं हैं। इनकी रचनाएँ आधुनिक हिन्दी के महान कवि दुष्यंत कुमार की पंक्तियों “मै जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ/ वह ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ” की तरह, आँखन-देखी और भोगी हुई अनुभूतियों को प्रकट करती हैं। हमें ज्ञात नहीं था कि इनके अंतस में एक बड़ा कवि प्रच्छन्न है। आज वह मनीषी विद्वानों और विदुषी साहित्यकारों की मूल्यवान उपस्थिति में प्रकट हुआ है, जो हिन्दी के लिए अत्यंत शुभकारी है। हम भविष्य में डा आज़ाद के रूप में एक बड़े कवि की अपेक्षा कर सकते हैं। डा सुलभ ने उन्हें साहित्य की साधना में और अधिक समय देने का आग्रह किया।वीरकुँवर सिंह विश्वविद्यालय,आरा के निवर्तमान कुलपति प्रो देवी प्रसाद तिवारी, दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर तथा वरिष्ठ कवयित्री डा पूनम आनंद ने भी काव्य-पाठ पर अपने विचार रखे। आरंभ में चर्चित कवि डा अमरदीप ने कवि का विस्तृत परिचय दिया तथा कहा कि उनकी रचनाओं में कहीं मुक्तिबोध, तो कहीं अज्ञेय, तो कहीं नागार्जून और कबीर दिखाई देते हैं। साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने रीति-कालीन कवि सैयद ग़ुलाम नबी ‘रसलीन’ समेत अन्य कवियों की पंक्तियों के साथ मंच का अत्यंत प्रभाशाली संचालन किया। धन्यवाद-ज्ञापन आयोग के सदस्य डा अशोक कुमार ने किया।इस अवसर पर आयोग के सदस्य प्रो उपेन्द्रनाथ वर्मा, सेवनिवृत भा प्र से अधिकारी अशोक कुमार चौहान, वरिष्ठ साहित्यसेवी डा कल्याण झा,कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, सागरिका राय, डा ब्रह्मानंद पाण्डेय, डा वीरेंद्र कुमार दत्त, डा साक्षी झा, डा सुषमा कुमारी, नीतू कुमारी नूतन, डा मिथिलेश कुमार ‘मुकुल’, लता प्रासर, दुर्गा नाथ झा आदि बड़ी संख्या में प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।