कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट /पटना /डॉ अनिल सुलभ, अध्यक्ष – बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ने महान साहित्यकार “फणीश्वर नाथ रेणु”की जयंती पर दी विनम्र श्रद्धांजलि.फणीश्वर नाथ रेणु ने आंचलिक जीवन की गंध, लय, ताल, सुर, सुंदरता और कुरूपता को अपनी कहानियों और उपन्यासों में बेहतरीन ढंग से चित्रण किया है। रेणु जिनकी रचना में खेत, खलिहान, चौपाल, पनघट के रास्ते, बैल, जोहड़, लकड़ी की तख्ती, पीपल का पेड़, उन पेड़ों के सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट, खेतों में उगती भूख, उस भूख के लिए जलता हुआ चुल्हा और उस चुल्हे पर सिकती हुई रोटी सबकुछ देखने को मिलता है।जब भी हम फणीश्वरनाथ रेणु जी की कोई भी रचना पढ़ते हैं तो लगता है जैसे वह खुद ग्रामीण जीवन पर कोई लोकगीत सुना रहे हों। रेणु के कहानियों के पात्रों में एक अजीब किस्म की इच्छाशक्ति देखने को मिलती है। उनके पात्र गरीबी, अभाव, भुखमरी और प्राकृतिक आपदाओं से जूझते हुए मर तो सकते हैं, लेकिन परिस्थितियों से हार नहीं मानते।