पटना, ५ मार्च । पटना विश्वविद्यालय के पूर्वकुलपति और आध्यात्मिक-बौद्धिक संपदा से संपन्न विद्वान डा एस एन पी सिन्हा एक महान चिकित्सा-शिक्षाविद ही नहीं, एक बदे और प्रणम्य साहित्यकार भी थे। उन्हें भारतीय वांगमय का गहरा अध्ययन और देश की महान चिंतन परंपरा का प्रचुर ज्ञान था, जो उनके व्याख्यानों और लेखन में लक्षित होता था। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से भी उनका जुड़ाव गहरा था और वे इसके सम्मानित आजीवन सदस्य और स्थायी समिति के भी माननीय सदस्य थे। हाल ही में भारतीय-चिंतन पर केंद्रित उनकी एक बहुचर्चित पुस्तक ‘शंख ध्वनि प्रकाशित हुई थी, जिसका लोकार्पण सम्मेलन सभागार में समारोह पूर्वक किया गया था। इसके पूर्व इनके चार ग्रंथ ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, ‘असतो मा सद्गमय’, ‘असतो मा सद्गमय’ तथा ‘नमसा विधेम’ का प्रकाशन हो चुका था। अत्यंत मूल्यवान ये ग्रंथ उनके उन लेखों के संकलन हैं जो भारतीय दर्शन और चिंतन की व्याख्या करते हैं। उनके निधन से प्रबुद्ध-समाज ने एक महान सारस्वत व्यक्तित्व को खो दिया है। यह बातें शनिवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित शोक-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि डा सिन्हा नगर के अंगुली-गण्य विद्वानों में थे, जिनके प्रति समाज के हर वर्ग की श्रद्धा थी। नगर के सारस्वत-उत्सवों के प्राण थे। वे आदरपूर्वक साहित्यिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक उत्सवों में बुलाए जाते थे। जो सम्मान उन्हें प्राप्त था, वह सम्मान नगर में किसी अन्य पूर्व कुलपति को नहीं मिला। वो एक आदर्श और अनुकरणीय व्यक्तित्व थे। वे अपने विचारों और रचनाओं से प्रबुद्धजनों के मानस में सदैव जीवित रहेंगे।शोक-गोष्ठी में, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पांडेय, सम्मेलन के उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा अर्चना त्रिपाठी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, सुनील कुमार दूबे, राजेश शुक्ला,कृष्ण रंजन सिंह , डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने भी अपने श्रद्धा-उद्गार व्यक्त किए। अंत में दो कुछ पल के लिए मौन रख कर दिवंगत दिव्यात्मा की शांति हेतु ईश्वर से प्रार्थना की गई।