सियाराम मिश्रा, वरीय संपादक नें संस्कृत और संस्कृति की उदासीनता पर डॉक्टर अंजनी कुमार मिश्र ” प्रबंधक ” विश्वनाथ ब्रम्हचर्य संस्कृत महाविद्यालय रामघाट, वाराणसी से खास बातचीत की ।डॉ.अंजनी मिश्रा ने कहा की सभी भाषाओं की जननी देववाणी भगवान शिव के रुद्र होकर डमरु के टंकार से शब्दों का उद्गम हुआ । पहला शब्द ॐकार हुआ । वाराणसी की तंग गलियों में आज से दो दशक पहले तक अनेक विद्या आश्रम यानी विद्यालय संस्कृत के हुआ करते थे जिसमें बिहार झारखंड मध्य प्रदेश नेपाल तमिलनाडु आंध्र तक के बच्चे संस्कृत की शिक्षा यहां के वेद विद्यालय में ग्रहण करते थे यहां से वेद पाठी विद्यार्थी अनेक विश्वविद्यालयों में कुलपति के पद पर आसीन हुए साथ ही साथ सेना में धर्मगुरु के पद पर ही सेवाएं दे रहे हैं दुनिया में संस्कृत ही एक वह ज्ञान है जिसके बल पर व्यक्ति गुरु की उपाधि से शोभायमान तो होता ही है साथ ही मान सम्मान एवं लक्ष्मी से अंगीकार होता है लेकिन वर्तमान समय में संस्कृत विद्यालयों की जो दुर्दशा है उसके लिए प्रशासनिक अमला और सत्ता के गलियारे में बैठे राजनेता जिम्मेदार हैं आधुनिक शिक्षा एवं अंग्रेजी की शिक्षा को सरकारी जितना जी जान से ध्यान दे रही हैं उसका एक भाग भी संस्कृत विद्यालयों के शिक्षक संस्कृत विद्यालयों के भवन एवं संस्कृत विद्यालयों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की ओर दिया जाता है अनेक विद्यालय जिनसे स्थिति में हो गए हैं वहां अध्यापन कराने वाले अध्यापक धीरे-धीरे सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं नई नियुक्तियां आज भी सृजित पड़ी हुई है ।