कौशलेन्द्र पाराशर पटना से । अब और कोई देर किए विना भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी घोषित हो। इस संकल्प के साथ बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का दो दिवसीय ४१वाँ महाधिवेशन रविवार को संपन्न हो गया। समारोह के मुख्य अतिथि और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ व वरिष्ठ चिंतक वेद प्रताप वैदिक ने इस अवसर पर हिन्दी सेवी विदुषियों और विद्वानों को विविध नामित उपाधियों से अलंकृत किया।खचाखच भरे सम्मेलन सभागार को संबोधित करते हुए, डा वैदिक ने कहा कि हिन्दी के बल पर ही भारत विश्व शक्ति तथा विश्व-गुरु बन सकता है। यह अंग्रेज़ी के बल पर संभव नही है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को हिन्दी के विकास, प्रचार-प्रसार और विस्तार के लिए बड़े फ़ैसले लेने होंग़े। सभी भारतीयों को भी अपनी ओर से चेष्टा करनी चाहिए। अपने हस्ताक्षर हिन्दी में करने चाहिए। बैंकों में हस्ताक्षर हिन्दी में करें।अपने अध्यक्षीय संबोधन में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता के ७५ वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात भी देश की अपनी कोई भाषा भारत की सरकार के कामकाज की औपचारिक भाषा नहीं बन पायी है। आज भी केंद्रीय सरकार की कामकाज की औपचारिक भाषा अंग्रेज़ी है। यह समस्त भारतवासियों के लिए ‘वैश्विक लज्जा’ का विषय है। यह अधिवेशन प्रस्ताव पारित कर भारत की सरकार से, देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी घोषित करने का विनम्र आग्रह करता है।केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि हिन्दी को विज्ञान और तकनीक की भाषा बनाई जानी चाहिए। जब तक ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में इसे प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी, हिन्दी का विकास अधूरा है। देश के सिर्फ़ सात प्रतिशत अंग्रेज़ी जानने वाले लोग देश के सभी शीर्ष पदों पर अधिकार जमाए बैठे हैं।आज के प्रथम वैचारिक सत्र में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के अध्यक्ष और देश के विख्यात विद्वान प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि देश में हुए नवीन सर्वेक्षण से विदित होता है कि भारत में ३६ सौ से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ प्रचलन में हैं।दक्षिण भारतीय हिन्दी प्रचार समिति की पूर्व कुलपति प्रो राम मोहन पाठक ने कहा कि भाषा भाव और भावनाओं का विषय है। हिन्दी तमाम विरोध के बाद भी लगातार बढ़ रही है।अटल बिहारी वाजपेयी विश्व विद्यालय के संकायाध्यक्ष डा आर बालशंकर ने कहा कि, दक्षिण और उत्तर का सदियों से प्राचीन और गहरा संबंध रहा है। केरल में हिन्दी की प्रगति बहुत तेज है। आने वाले दो दशकों में यह दक्षिण भारत में सबसे अधिक हिन्दी बोलने वाला राज्य हो जाएगा। केरल के चार करोड़ की आबादी में ४० लाख लोग हिन्दी बोलते हैं। यह भ्रामक प्रचार है कि दक्षिण में हिन्दी का विरोध है। इस सत्र में डा मेहता नगेंद्र द्वारा संपादित पत्रिका ‘हरित वसुंधरा’ का लोकार्पण भी किया गया।प्रथमसत्र के पश्चात देश के शीर्षस्थ कवि पं सुरेश नीरव की अध्यक्षता में विराट कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें देश भर से आए ५० से अधिक कवियों ने अपनी कविताओं से इस महाधिवेशन को गरिमा प्रदान की। पं नीरव ने अपनी इन बहुचर्चित पंक्तियों से बिहार की दिव्य संस्कृति और शक्ती का आह्वान किया कि “ये बिहार तो भारत के सम्मान का गायक है/ संस्कृति की धरोहर का अनुपम गायक है।” देश के शीर्षस्थ कवियों में से एक पं बुद्धिनाथ मिश्र ने हिन्दी की जयकार इन पंक्तियों से की कि “जय होगी/ निश्चय जय होगी/ भारत की धरती पर इसकी जनभाषा की ही जय होगी।”समापन समारोह को पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार तथा चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने भी अपने मूल्यवान विचार व्यक्त किए ।कवि सम्मेलन का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा समापन समारोह का संचालन डा शंकर प्रसाद ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने किया। विभिन्न सत्रों में वरिष्ठ कथाकार और सम्मेलन के उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, नृपेंद्रनाथ गुप्त, बीरेन्द्र कुमार यादव, डा सीमा रानी, प्रो सुशील कुमार झा, डा ध्रुब कुमार,तथा डा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।