पटना, १४ अप्रैल। यदि यशस्वी पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार पं छविनाथ पाण्डेय न होते तो हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अस्तित्व दशकों पूर्व समाप्त हो जाता। सन १९१९ में स्थापित सम्मेलन को १९३६ में पाण्डेय जी के ही महान उद्यम और प्रभाव से, सम्मेलन को भूमि प्राप्त हुई और भवन-निर्माण हेतु धन-संग्रह हुआ और निर्माण भी। उनके नेतृत्व में पटना के साहित्याकारों और हिन्दी-सेवियों ने श्रमदान किया। अपने सिर पर ईंट-गारे ढोए। अपनी भूमि और भवन होने के कारण ही, बिहार की यह गौरवशाली साहित्यिक संस्था बची रह पायी।यह बातें गुरुवार को सम्मेलन सभागार में आयोजित जयंती समारोह व लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, सम्मेलन को अमर बनाने में जिन साहित्यकारों ने अपना सब कुछ न्योछावर किया, उनमें छविनाथ जी अग्रगण्य थे। वे सम्मेलन के प्रधानमंत्री और अध्यक्ष भी रहे। हिन्दी और अंग्रेज़ी के महान विद्वान, पत्रकारिता के आदर्श और मुद्रण-कला के विशेषज्ञ थे पाण्डेय जी। इस विषय पर उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी थी। पांडेय जी का ऋषि-तुल्य सारस्वत जीवन, स्तुत्य और अनुकरणीय है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, सुप्रसिद्ध लेखक डा रमेश झा, बच्चा ठाकुर, बाँके बिहारी साव, प्रो सुशील कुमार झा, डा विनय कुमार विष्णुपुरी तथा कृष्ण रंजन सिंह ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कवि जय प्रकाश पुजारी ने वाणी-वंदना से किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि “दिलों पर रख के एहसासों का मरहम जहां का ज़ख़्म बढ़ने से बचा ले/ कहीं पानी भी है तो खौलता-सा सुलगता दौर अश्कों से बुझा लें”। गीत के चर्चित कवि डा ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने जब इन पंक्तियों को स्वर दिया कि “यह खेल समझ नहीं आया/ जिसको अपना मानों, वह क्यों हो जाता है पराया” तो सभागार में एक पीड़ा भरी लहर दौड़ गई। कवि रामनाथ राजेश ने जीवन की ऊर्जा का अभिनन्दन करते हुए कहा कि “फूलों से नहीं काँटों से और समय के बाटों से तौला गया ये तन-मन/ जीवन तेरा अभिनन्दन”।कवयित्री डा अर्चना त्रिपाठी, डा शालिनी पाण्डेय, कुमार अनुपम, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, श्याम बिहारी प्रभाकर, भागवत शरण झा ‘अनिमेष’, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, पं गणेश झा, डा कुंदन लोहानी तथा नरेंद्र कुमार ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने किया।इस अवसर पर, रामाशीष ठाकुर, कृष्ण मुरारी प्रसाद, अमन वर्मा, संजीव कुमार, दुःख दमन सिंह, अनुभव कुमार, अश्विनी कुमार आदि अनेक प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।