कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट /बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने कहा होमियोपैथ के महान चिकित्सक डा.बी भट्टाचार्य एक चमत्कारी चिकित्सक ही नहीं सारस्वत चेतना रखने वाले एक साहित्य प्रेमी भी थे। वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वरीयतम संरक्षक सदस्य थे। उनके निधन से न केवल चिकित्सा-जगत को अपितु सारस्वत समाज की भी बड़ी क्षति पहुँची है । होमियोपैथिक चिकित्सा-पद्धति के एक युग का अंत हो गया है ।यह बातें डा भट्टाचार्य के निधन पर अपना शोकोदगार व्यक्त करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही । डा सुलभ ने कहा कि साहित्य सम्मेलन उनके आगामी जन्म-दिवस पर, उन्हें “वरीयतम संरक्षक सदस्य सम्मान” से विभूषित करने वाला था” किंतु अब यह कभी संभव नहीं हो सकेगा । सम्मेलन उनका जयंती समारोह आयोजित करेगा तथा इस अवसर पर हिन्दी की सेवा करने वाले चिकित्सकों को “डा बी भट्टाचार्य स्मृति सम्मान से अलंकृत किया जाएगा,शोक प्रकट करने वालों में सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, आनंद किशोर मिश्र, डा मधु वर्मा, डा शालिनी पाण्डेय, कृष्ण रंजन सिंह, सुनील कुमार दूबे, बाँके बिहारी साव, डा अर्चना त्रिपाठी, अमित कुमार सिंह, डा अमरनाथ प्रसाद आदि के नाम सम्मिलित है । रविवार के प्रातः लगभग सात बजे, 98 वर्ष की आयु में उन्होंने, भट्टाचार्य रोड, पटेल नगर स्थित अपने आवास पर अपनी अंतिम साँस ली । आज तीसरे पहर गुल्बीघाट पर उनका अग्नि-संस्कार संपन्न हुआ। उनके भतीजा डा अंशुमान भट्टाचार्य ने मुखाग्नि दी। उन्हें अपना कोई पुत्र नहीं था।