पटना, २० मई। “उठ गए हैं वो लोग जो रहे कभी ज़िंदा/ इस शहर में अब लाश और गिद्ध है बाक़ी”— प्रकृति के दोहन, स्वार्थ में अंधी हुई दुनिया और भीषण रक्त-पात ने सभ्य कहे जाने वाले समाज को क्या बना दिया है, इसकी ओर इंगिति करने वाली इन पंक्तियों से कवियों ने समाज के कर्णधारों को जगाने की चेष्टा की। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, बड़ी संख्या में उपस्थित कवियों और कवयित्रियों ने शुक्रवार को, प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर आयोजित कवि-सम्मेलन में, प्रकृति और पर्यावरण के महत्त्व को समझाने वाली तथा उसके दोहन से संसार पर छा रहे संकट के घनघोर बादल पर चिंताएँ भी प्रकट की।वरिष्ठ शायर आरपी घायल का कहना था कि “किसी को देखता हूँ मैं तो खद को भूल जाता हूँ/ उसी को फूल में, पत्ती में पत्थर में भी पाता हूँ/ ग़ज़ल के फूल खिलते हैं, गुलाबों की तरह मुझमें/ उन्हीं फूलों की ख़ुशबू मैं जमाने को लुटाता हूँ”। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने प्रकृति को साधु दृष्टि से देखते हुए कहा कि “आम बौर जब आया तो बही वसंत बयार/ बैठ प्रकृति आँगन में रही स्वयं को निहार”। गीत के चर्चित कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने अपने भावों को इन पंक्तियों में अभिव्यक्ति दी कि “भाव तुम्हारे रूप से लेकर लिखूँ प्रेम के गीत/ अर्पण करूँ तुम्हारा ही तुमको मेरे मन के मीत/ हम दोनों हैं एक दूजे के यह दुहराता जाऊँ/ तुम सुनो मैं गाता जाऊँ”।अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि “तड़प है कि तालाब है कि ज़िद है बाक़ी/ यह दिल भी धड़कता है कि उम्मीद है बाक़ी/ उठ गए हैं वो लोग जो रहे कभी ज़िंदा/ इस शहर में अब लाश और गिद्ध है बाक़ी। कवि के प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि प्रकृति के महान चितेरे पंत छायावाद-युग के प्रमुख स्तंभ और मानवतावादी कवि थे। उनकी रचनाओं के विराट विस्तार में प्रकृति का चित्ताकर्षक चित्रण तो है ही, समाज की पीड़ा और चिंता के साथ मानवतावादी समाजवाद भी है, जो प्रगतिवाद के रास्ते से अध्यात्म-वाद पर संपन्न और संपूर्ण होता है।डा सुलभ ने कहा कि, पंत जी की रचना-प्रक्रिया को समझने के लिए, उनके जीवन के चार काल-खंडों का अलग-अलग अध्ययन करना आवश्यक है। कवि अपने यौवन में, प्रेम और प्रकृति तथा उनके उदात्त सौंदर्य के चितेरे के रूप में दिखाई देते हैं। इसके पश्चात उन पर,साम्यवाद के जनक मार्क्स और प्रगतिवाद का प्रभाव दिखता है। फिर वे महात्मा-गाँधी से प्रभावित होकर सेवा और मानवता-वादी दृष्टिकोण के ध्वज-वाहक दिखते हैं। और, जीवन के चौथेपन में उन पर महर्षि अरविंदो का प्रभाव है, जिसमें उनकी आध्यात्मिक-चेतना उर्द्धगामी होती दिखाई देती है। उन्हें भारत सरकार के पद्म-भूषण अलंकरण, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘विद्या-वाचस्पति’ की उपाधि भी दी गई थी।वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम, डा शालिनी पाण्डेय, रामनाथ राजेश, मोईन गिरिडीहवी, जय प्रकाश पुजारी, अर्जुन प्रसाद सिंह,विष्णुकांत लाल, कुमार लक्ष्मीकान्त लाल, अनिल कुमार सिन्हा, शिवानंद गिरि आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी काव्य-पाठ किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने तथा तथा धन्यवाद ज्ञापन बाँके बिहारी साव ने किया। मंच का संचालन कवयित्री डा अर्चना त्रिपाठी ने किया।इस अवसर पर सच्चिदानन्द शर्मा, श्यामनन्दन सिन्हा, संतोष कुमार, दीपक राय, सौरव कुमार, अमित कुमार सिंह, नन्दन कुमार समेत बड़ी संख्या में कविगण और सुधी श्रोता उपस्थित थे।