पटना, २४ मई। इस्सयोग की साधना से सभी इच्छित फल प्राप्त होते हैं। साधक जिस भाव से साधना करता है, उसी के अनुरूप उसे उपलब्धि प्राप्त होती है। इसलिए प्रत्येक साधक के लिए भाव की शुद्धता सर्वाधिक आवश्यक है। शुद्ध भावना और समर्पण के साथ नियमित की जाने वाली साधना अवश्य सफल होती है।यह बातें, मंगलवार को, अंतर्रष्ट्रीय इस्सयोग समाज द्वारा, गोलारोड स्थित एम एस एम बी भवन में आयोजित समारोह में संस्था की अध्यक्ष और तत्त्वज्ञानी सदगुरुमाता माँ विजया जी ने कही। संस्था के संस्थापक और सूक्ष्म आध्यात्मिक साधना पद्धति ‘इस्सयोग’ के प्रवर्त्तक ब्रह्मलीन सदगुरुदेव महात्मा सुशील कुमार के महानिर्वाण की स्मृति में प्रत्येक मास की २४ तारीख़ को आहूत होने वाले इस पुण्योत्सव में अपना आशीर्वचन देती हुई माताजी ने कहा कि तप और साधना कठिन तो होती है, किंतु उससे जो शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, वह बहुत बड़ी हैं। जो जितना कष्ट उठाता है, उतना ही बड़ा फल पाता है।उत्सव का आरंभ माताजी की दिव्य उपस्थिति में ‘ओमकार’ के सामूहिक उच्चारण और उसके पश्चात सदगुरु के आह्वान की साधना के साथ हुआ। इसके बाद एक घंटे का अखण्ड संकीर्तन किया गया। इस्सयोगियों के श्रद्धा-उद्गार के पश्चात गुरुमाँ का आशीर्वचन हुआ और प्रसाद के साथ यह पुण्योत्सव संपन्न हुआ।यह जानकारी देते हुए, संस्था के संयुक्त सचिव डा अनिल सुलभ ने बताया कि, समारोह में इंग्लैंड से आए वरिष्ठ साधक डा जेठानंद बैकानी,संस्था के संयुक्त सचिव ई उमेश कुमार, सरोज गुटगुटिया, लक्ष्मी प्रसाद साहू, नीना एस गुप्ता, शिवम् झा, अनंत कुमार साहू, श्रीप्रकाश सिंह,ममता जमुआर, राजेश वर्णवाल, किरण प्रसाद, वीरेंद्र राय, किरण झा, गायत्री प्रदीप, प्रभात झा समेत विभिन्न स्थानों से आए इस्सयोगी उपस्थित थे।