पटना, २७ मई। यह ग़लत धारणा है कि मोतियाबिंद को पकने के बाद निकाला जाना चाहिए। मोतियाबिंद के पक जाने के बाद, वह चिकित्सकों और रोगियों, दोनों के लिए ही मुश्किलें खड़ी करता है। इसलिए उसका यथाशीघ्र निकाल दिया जाना ही उचित है। ४० वर्ष की आयु पार कर चुके हर एक व्यक्ति को अपनी आँखों की जाँच अवश्य करानी चाहिए, भले ही, उन्हें कोई शिकायत न मालूम होती हों।यह बातें, शुक्रवार को बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च में संस्थान के ऑफ्थालमोलौजी विभाग द्वारा आयोजित निःशुल्क नेत्र जाँच शिविर का उद्घाटन करते हुए, सुविख्यात नेत्ररोग विशेषज्ञ और विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के अध्यक्ष डा राजवर्द्धन आज़ाद ने कही। उन्होंने कहा कि नेत्र-रोगियों की तुलना में विशेषज्ञों की भारी कमी है। इसलिए युवाओं को चिकित्सा के नेत्र-रोग का क्षेत्र प्राथमिकता से चुनना चाहिए।पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि आँखें ईश्वर की सबसे बड़ी वरदान है। यह उम्र भर स्वस्थ रहे, इसका ध्यान सबको रखना चाहिए।उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कहा कि उनका संस्थान स्वास्थ्य-सेवाओं के लिए, अपनी स्थापना के वर्ष १९९० से ही निःशुल्क शिविरों का आयोजन करता आ रहा है। सस्थान की ओर से सैकड़ों की संख्या में स्वास्थ्य-शिविर, टीकाकरण शिविर, नेत्र-जाँच शिविर, विकलांगता पुनर्वास शिविर, श्रवण-जाँच शिविर लगाए जा चुके हैं। कोरोना के कारण इसमें व्यवधान आए थे, किंतु अब पुनः यह क्रम आरम्भ हो गया है। संस्थान में उपरोक्त सभी सेवाएँ प्रतिदिन उपलब्ध है।शिविर में २७० रोगियों की जाँच की गई। इनमे एम्स, दिल्ली के रोगी संजीव मिश्र और अम्बरीष कांत सम्मिलित हैं। जाँच में २१ व्यक्तियों को मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए चिन्हित किया गया। डा राजवर्द्धन आज़ाद, डा जया कुमारी, डा संजीता रंजना, अभिषेक कुमार, अभिजीत कुमार, पूजा कुमारी, सुकृति स्वराज, फ़ैज़ आलम, ऋतिका राय, वीणा गुप्ता, मनीष कुमार, उजमा परवीन, सिमरन राय, शालिनी कुमारी,मधुमाला कुमारी, स्निग्धा वर्मा तथा चंद्रा आभा समेत संस्थान के ऑफ्थालमोलौजी विभाग के वरीय छात्र-छात्राओं ने अपनी सेवाएँ दी।