वरीय संपादक- जितेन्द्र कुमार सिन्हा/भारत हमेशा शांति, सदभाव और भाईचारा में विश्वास करता है, जहाँ सभी धर्मों को बराबर सम्मान दिया जाता है, इसलिए भावना ही भारतीय संस्कृति की खासियत है “सर्वधर्म समभाव”। आजकल देश में पैगंबर पर टिप्पणी विवाद का वातावरण बन गया है, जो खेद जनक है।पैगंबर की टिप्पणी को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में तोड़-फोड़ हुई है और यह कम शुक्रवार को नमाज अदा करने के बाद की गई है जो नहीं होना चाहिए था। होना यह चाहिए था कि पैगंबर के सम्बन्ध में तथ्य परक जानकारी से समाज के सभी लोगों को टीवी के माध्यम से देनी चाहिए थी ताकि विवाद सदा के लिए बंदहो जाय। यह न होकर मात्र विरोध करना, तोड़फोड़ करना आदि तरह तरह की मांग करना, को गई टिप्पणी को बल देता है।देश में अमन-शांति के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाने, लोगों को जागरूक करने, आवश्यकता पड़ने पर गांधीवादी नीति अपनाने की गुजारिश किया जा रहा है। जबकि इस्लाम में हिंसा की इजाजत नहीं देता है इसलिए किसी बात के विरोध के लिए व्यवहार और व्यक्तित्व को हथियार बनाना चाहिए। जुम्मे के दिन भीड़ बनाकर कहीं भी पत्थरबाजी या हिंसा करना गैर शरई कार्य है। यह जानकारी सुन्नी उलेमा काउंसिल के माध्यम से विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार पर आधारित है।जहां तक तोड़फोड़ और अशांति की अप्रिय घटना हो रही है वहीं कुछ कट्टरपंथियों द्वारा जुवान और सर काट कर लाने पर इनाम घोषित किया जा रहा है। लोग भूल गये हैं कि प्रख्यात शायर इकबाल ने यह पंक्ति लिखा था “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।” इसलिए देशवासियों को विवाद के पीछे की असली सच्चाई को समझ कर अनावश्यक तूल देने से बचना चाहिए और शांति, सदभाव और भाईचारे की राह पर चलकर प्रगति का रास्ता चुनना चाहिए। ऐसा करने से सब लोगों के लिए बेहतर होगा।
भारत के ज्यादातर लोग एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करने में विश्वास रखते है, यही कारण होता है कि यहाँ हर धर्म के लोग दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा शांति और सुकून का अनुभव करते है।देखा जा रहा है कि बच्चों में पनपती हिंसक प्रवृत्ति दिनों दिन चिंता का विषय होता जा रहा है।भारत की ऐसी व्यवस्था अपने आप बैठे बिठाये नहीं बनी होगी, बल्कि इसके पीछे कोई न कोई आवश्यक काम कर रहा होगा। अब राजनीति में राष्ट्रवाद पर कट्टरवाद हावी होता दिख रहा है।दुखद स्थिति यह हो गयाहै कि जब कानून अपना काम करता है तो लोग मजहब की खिलाफ हो हल्ला करने लगते है। इस प्रकार जब मतलब की बात होती है तो कानून के मुताबिक सही होगा और जब आपको कानून के मुताबिक पसंद न आये तो मजहबी रिवायत की दुहाई देने लगते है। जब दूसरे आस्था वाले अपनी आस्था की बात करते है तो मजहब के खिलाफ हल्ला कर कानून की दुहाई देने लगते है।अच्छा तो यह होगा कि जो राष्ट्रवाद के विरोध में काम करे, चाहे वह किसी कौम का हो उनको केन्द्र और राज्य सरकार से मिलने वाली सभी सुविधाएं बन्द कर देनी चाहिए और इसकी सुनवाई किसी न्यायालय में नही हो ऐसा कानून बनना चाहिए।
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