पटना, १ जुलाई। अनेक अलक्षित साहित्यकारों को प्रकाश में लाने वाले स्तुत्य लेखक डा सुरेंद्र प्रसाद जमुआर एक ऐसे मनीषी और परिश्रमी साहित्य-साधक थे, जिन्होंने अपनी कल्याणकारी लेखनी से बिहार की सोयी आत्मा को जगाया तथा बिहार की महान साहित्यिक वैभव को प्रकाश में लाया। वहीं सुख्यात शल्य-चिकित्सक डा जितेंद्र सहाय एक ऐसे बहुआयामी सांस्कृतिक-पूरुष थे, जिन्हें प्रबुद्ध समाज एक महान सर्जक और ‘सर्जन’ के रूप में जानता है। इन दोनों विभूतियों ने हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नायन में अमूल्य योगदान दिए। ये दोनों बिहार के स्वर्णाभूषण थे।यह बातें शुक्रवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह एवं लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि आधुनिक हिन्दी साहित्य के उन्नयन में बिहार के साहित्यकारों ने अभूतपूर्व योगदान दिया है, किंतु ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास’ में बिहार के हिन्दी-सेवियों की चर्चा अत्यंत गौण है। जमुआर जी ने अपने चार अत्यंत मूल्यवान ग्रंथों, तीन खण्डों में प्रकाशित ‘बिहार के दिवंगत हिन्दी साहित्यकार’ एवं बिहार के साहित्यकारों की साहित्य यात्रा’ में, बिहार के साढ़े तीन सौ से अधिक हिन्दी-सेवियों के अवदानों को, उनके संपूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व के साथ प्रकाश में लाने का अत्यंत महनीय कार्य किया। इन ग्रंथों में इनकी विद्वता, अन्वेषण-धर्मिता, अकुंठ परिश्रम, साहित्य के प्रति अमूल्य निष्ठा और लेखन-सामर्थ्य का परिचय मिलता है।डा सुलभ ने कहा कि डा जितेंद्र सहाय ने जिस कौशल से चाकु चलाया उसी कौशल से लेखनी भी चलाई। वे साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष एवं एक प्रभावशाली नाटककार भी थे। उनके नाटकों, ‘निन्यानबे का फेर’, ‘मुण्डन’, ‘बग़ल का किरायदार’, ‘महाभाव’ के अनेक मंचन पटना एवं अन्य नगरों के प्रेक्षागृहों में होते रहे।वरिष्ठ साहित्यकार और बिहार सरकार के पूर्व विशेष सचिव डा उपेन्द्रनाथ पाण्डेय ने दोनों साहित्यिक विभूतियों को स्मरण करते हुए, उन्हें हिन्दी का प्रणम्य व्यक्तित्व बताया।डा जमुआर के साहित्यकार पुत्र और दूरदर्शन बिहार के पूर्व कार्यक्रम-प्रमुख डा ओम् प्रकाश जमुआर ने कहा कि बिहार के दिवंगत साहित्यकारों पर लिखते हुए, जमुआर जी ने जो साधना की और जो श्रम किया वह अद्वितीय है। एक एक साहित्यकार पर सामग्री जुटाने में जो उन्हें करना और झेलना पड़ा वह सामान्य व्यक्तियों के लिए दुष्कर है।आरम्भ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, डा जितेंद्र सहाय जितनी निष्ठा और प्रेम साहित्य से रखते थे, उतना ही साहित्य-सेवियों से भी। नगर के सभी साहित्यकारों के वे निजी चिकित्सक थे। किसी भी साहित्यकार को किसी भी प्रकार रोग हो, डा साहब की सेवा निःशुल्क उपलब्ध होती थी। उनका आवास उनके जीवन-पर्यन्त साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों का केंद्र बना रहा। सुप्रसिद्ध नाटकाकार डा अशोक प्रियदर्शी, चंदा मिश्र, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, डा शालिनी पाण्डेय ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में, डा पूनम देवा ने ‘दोषी कौन?’, विभारानी श्रीवास्तव ने ‘निशा में भोर’, कुमार अनुपम ने ‘नौकरी की अहर्ता’, पूनम कतरियार ने ‘बात धंधे की’, सागरिका राय ने ‘ताजी हवा’ सीमा रानी ने ‘मोक्ष की प्राप्ति’, डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘अजीब कहानी’, चितरंजन भारती ने ‘निर्णय’, श्याम बिहारी प्रभाकर ने ‘तौबा-तौबा’, रंजना सिंह ने ‘उऋण’, डा सुषमा कुमारी ने ‘एक औरत की आत्म-कथा’, वीरेंद्र भारद्वाज ने ‘इतिहास’, सागर भारत ने ‘एक लड़की का प्रश्न’, तथा सुदीप अग्रवाल ने ‘सांप्रदायिक उपहार’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।समारोह में, शायर कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, बाँके बिहारी साव, श्रीकांत व्यास, अर्जुन प्रसाद सिंह, अधिवक्ता शिवानंद गिरि, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, रामाशीष ठाकुर, डा पंकज कुमार सिन्हा, अमन वर्मा, दुःख दमन सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
One Comment
संतोष गर्ग
सादर वंदन महान आत्माओं को 🙏🙇♀️