पटना, ७ जुलाई। हिन्दी और संस्कृत के उद्भट विद्वान और महान साहित्य-सेवी आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा पुरातन भारतीय ज्ञान के नूतन प्रकाश थे। भारतीय दर्शन और वैदिक साहित्य का उन्हें गहरा अध्ययन था। वे पटना विश्वविद्यालय और दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। संस्कृत के साथ हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में उनके अवदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। भाषा-विज्ञान और साहित्यालोचन के वे यशस्वी विद्वान हीं नही,महान आचार्य भी थे।यह बातें गुरुवार को बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आचार्य शर्मा १०४वीं जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, आचार्य शर्मा कुछ थोड़े से महापुरुषों में से एक थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, कला, संगीत जैसे मनुष्य के लिए सर्वाधिक मूल्यवान तत्त्वों के संरक्षण और विकास में खपा दिया। वे सच्चे अर्थों में संस्कृति और संस्कार के पक्षधर संस्कृति-पुरुष थे। साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भी उनकी स्तुत्य सेवाओं के लिए साहित्य-समाज उनका ऋणी है। उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं में मूल्यवान सृजन किए। काव्य-शास्त्र , अलंकार और साहित्यालोचन पर लिखी गई उनकी पुस्तकें आज भी विद्यार्थियों के लिए आदर्श ग्रंथ है। नाटक, ललित निबंध समेत साहित्य की विभिन्न विधाओं में उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं, जो आज अत्यंत मूल्यवान धरोहर के रूप में साहित्य संसार को उपलब्ध है।समारोह का उद्घाटन करते हुए, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के कूलाधिपति तथा सांसद पद्मश्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि, आचार्य शर्मा जी संस्कृत और हिन्दी के मनीषी विद्वान और महान आचार्य थे। मेरी पत्नी ने, जिन्होंने हिन्दी विषय से ही स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी, आचार्य शर्मा जी के निर्देशन में ही अपना पीएचडी किया था।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, आचार्य शर्मा बहु-भाषा विद विद्वान थे। किंतु जिस भाषा में व्याख्यान देते थे, उसमें कभी भी किसी और भाषा के शब्द का उपयोग नहीं करते थे। उनके उच्चारण और संवाद-शैली की विशिष्टता अद्भुत थी। वे संस्कृत के माध्यम से हिन्दी में आए। वे समय और नियम के पक्के तथा आदर्शवादी व्यक्तित्व थे।दूरदर्शन बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डा राज कुमार नाहर, डा सत्येंद्र सुमन, बच्चा ठाकुर तथा डा अर्चना त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में वरिष्ठ कवि शायर आरपी घायल, डा ब्रह्मानन्द पाण्डेय, कुमार अनुपम, डा शालिनी पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, डा सुषमा कुमारी, राज आनंद, अर्जुन प्रसाद सिंह, कुमार लक्ष्मीकान्त आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं पर गहरा प्रभाव छोड़ा।मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। डा चंद्रशेखर आज़ाद, रेणु कुमारी, अमन वर्मा,अमित कुमार सिंह, रोहित कुमार, श्याम नन्दन सिन्हा आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।