पटना, १६ जुलाई। डा जगदीश पाण्डेय वृति से अभियन्ता किंतु हृदय से कवि थे। सृजन नहीं कर पाए, किंतु सर्जकों की उदारता से सेवा की। साहित्य और साहित्यकारों की अत्यंत मूल्यवान सेवाओं के लिए वे सदा स्मरण किए जाते रहँगे।शनिवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में डा पाण्डेय की जयंती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने यह बातें कही। डा सुलभ ने कहा कि डा पाण्डेय साहित्य सम्मेलन से तब जुड़े, जब सम्मेलन अपने कठिन-काल से गुजर रहा था। जिससे उबारने के लिए, किसी जगदीश पाण्डेय जैसे उदार और समर्थ व्यक्ति की ही आवश्यकता थी। सम्मेलन को पटरी पर लाने के लिए उन्हें अनेक प्रकार के व्यय-भार वहन करने पड़े थे। डा पाण्डेय ने भले हीं साहित्य की दृष्टि से कोई बड़ी सेवा नहीं की, किंतु सम्मेलन को बचाकर और साहित्यकारों को पोषण देकर उन्होंने हिन्दी भाषा और सम्मेलन का बड़ा उपकार किया। उन्होंने अनेकों असमर्थ साहित्यकारों की पुस्तकें अपने धन से छपवाई और उन्हें संबल दिया।अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, पाण्डेय जी ने साहित्य सम्मेलन को आड़े वक़्त में संरक्षण देकर तथा साहित्यकारों को विविध प्रकार से सहयोग देकर, हिन्दी की उन्नति में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सम्मेलन को दुर्दशा से उबारने के लिए उन्होंने जो कुछ किया वह कार्य कोई बड़ा साहित्यकार भी नहीं कर पाया। ईश्वर की उन पर बड़ी कृपा थी। वे दस हाथों से कमाते थे और दर्जनों हाथों से सदकर्म में लुटाते थे।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, ओम् प्रकाश पांडेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, बच्चा ठाकुर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, कवयित्री आराधना प्रसाद, प्रवीर पंकज, जय प्रकाश पुजारी, चितरंजन लाल भारती, चंदा मिश्र तथा अर्जुन प्रसाद सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर युवा कवि नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, मनोज कुमार झा, अमन वर्मा, दुःख दमन सिंह, डा विजय कुमार दिवाकर, अमित कुमार सिंह, अभिषेक कुमार, दिनेश कुमार, दिगम्बर कुमार जायसवाल आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।