पटना, ६ अगस्त। “धरती ओढ़ी हरी चुनरिया, हे सखि ! सावन आयो रे !” — “तुम क्षितिज पर सूर्य हो, मै धूप हल्की गुनगुनी हूँ”, जैसी मधुर भावों से युक्त गीत-ग़ज़लों से कवयित्रियों ने काव्य-रसिकों का दिल जीत लिया। शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, मानव-मन को मोहक हरीतिमा और मादक फुहार से नव-स्फुरण उत्पन्न करने वाले मधुमास सावन में, ‘श्रावणोत्सव कवयित्री सम्मेलन’ आयोजित किया गया था। सम्मेलन का मंच आज पूरी तरह महिला साहित्यकारों को समर्पित रहा। हरे चित्ताकर्षक परिधानों में सुशोभित हो रही कवयित्रियाँ भी ख़ूब मौज में रहीं। महिलाएँ मंच पर प्रतिष्ठित थीं और कविगण श्रोता दीर्घा में बैठ कर आनंद ले रहे थे।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित काव्य-गंगा की गंगोत्री बनी चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से इस मधुरोत्सव का आरंभ किया। चर्चित और सुकंठी कवयित्री आराधना प्रसाद ने प्रकृति और पुरुष के अंतरसंबंधों को परिभाषित करने वाली इन पंक्तियों को स्वर दिया कि “तुम क्षितिज पर सूर्य हो, मैं धूप हल्की गुनगुनी हूँ/ तुम किनारों सा हो जोगी और मैं चंचल नदी हूँ”। डा पुष्पा जमुआर ने सावन की चिर-मोहिनी स्वरूप को चित्रित करते हुए कहा कि “धरती ओढ़ी हरी चुनरिया, हे सखि! सावन आयो रे !”
कवयित्री सागरिका राय ने एक मधुर प्रश्न किया कि “नारी के हाथों में खनकती हरी चूड़ियों और प्रकृति के विस्तार में फैली हरियाली के बीच क्या है अन्तर?”। श्वेता ग़ज़ल ने विरह की इन मार्मिक पंक्तियों से सावन को याद किया कि “याद आया कोई, आँखें बरसी बहोत/ जब भी सावन का हम गीत गाने लगे”। निकहत आरा का कहना था कि “अक्स में अपनी जब नज़र रखना/ आइने को संभाल कर रखना”। मधुरानी लाल की व्यथा थी कि “रिमझिम बरसे मस्त बंदरिया/ घर नहीं आए साँवरिया”।अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में वरिष्ठ कवयित्री डा मधुवर्मा ने मेघ की महिमा को यों शब्द दिया कि “सघन मेघ प्यासी धरती पर/ आया बूँदों का नवरस लेकर/ पुलकित वसुधा जल-निर्झर से/ नव-स्पंदन जड़-चेतन में चंचल मन भरमाया/ सघन मेघ मुसकाया।”मंच की संचालिका डा शालिनी पाण्डेय’, डा पूनम आनन्द, डा सुमेधा पाठक, डा सुषमा कुमारी, डा अर्चना त्रिपाठी, डा अलका वर्मा, डा सुधा सिन्हा, सीमा रानी, नूतन कुमारी सिन्हा, पूनम सिन्हा श्रेयसी, ऋषिता गुप्ता, श्वेता मिनी, शमा कौसर ‘शमा’, राजकांता राज, डा नीलू अग्रवाल,जबीं शम्स निज़ामी, डा सुलक्ष्मी कुमारी, सुजाता मिश्र, डा संजू कुमारी, प्रेमलता सिंह राजपुत, ज्योति मिश्रा, रूबी भूषण, डा रेखा भारती,अर्चना भारती, उत्तरा सिंह, बंदना प्रसाद, सपना कुमारी, प्रेमलता सिंह, स्वप्निल भारती, अनिता कुमारी आदि कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं से ख़ूबसूरत अहसास जगाया।कवयित्री-सम्मेलन के पूर्व, सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष और महान स्वतंत्रता-सेनानी महाकवि पं रामदयाल पाण्डेय एवं हिन्दी के महान प्रचारक बाबू गंगा शरण सिंह को, उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ, उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, आचार्य विजय गुंजन, सुनील कुमार दूबे, कुमार अनुपम, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, बच्चा ठाकुर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कमल किशोर ‘कमल’, मोईन गिरीडीहवी, सदानंद प्रसाद आदि साहित्यसेवियों और प्रबुद्धजनों ने पुष्पांजलि अर्पित की।इस अवसर श्याम नन्दन सिन्हा, कौशलेंद्र कुमार, विजय कुमार, कुमार शान्तनु, अमन वर्मा, राज कुमार रौशन, हिमांशु दूबे, अमित कुमार सिंह, मेनका कुमारी, दिगम्बर जायसवाल आदि प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।