पटना, ९ अगस्त। हिन्दी के ऋषि-तुल्य साहित्यकार आचार्य शिव पूजन सहाय का साहित्यिक व्यक्तित्व हिमालय की तरह ऊँचा था। वो हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायक थे। उन्होंने साहित्य और शिक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वे साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष और राष्ट्र भाषा परिषद के संस्थापक मंत्री थे। साहित्य में आंचलिकता के प्रणेता और अद्भुत प्रतिभा के संपादक थे आचार्य जी, जिनकी लेखनी ने हिन्दी के अनेकों साहित्य-सेवियों की प्रतिभा को निखारा और ऊँचाई प्रदान की।यह बातें मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आचार्य सहाय की जयंती पर आयोजित समारोह और लघु-कथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि शिवजी हिन्दी साहित्य के जीवित ज्ञान-कोश थे। उनके संपादन कौशल की कोई तुलना नही थी। कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र हों या कि ‘कामायनी’ जैसे महाकाव्य के रचयिता महाकवि जयशंकर प्रसाद, अपनी पुस्तकें, प्रकाशन के पूर्व आचार्य जी से दिखा लेना आवश्यक समझते थे। कहा जाता है कि उनके हाथों में संपादन की एक ऐसी क्षेणी-हथौड़ी थी, जो अनगढ़ साहित्य को भी तराश कर, आकर्षक और मूल्यवान बना देती थी।डा सुलभ ने कहा कि, आचार्य शिवजी जितने बड़े विद्वान थे, उतने ही सरल-सहज और विनम्र साधु-पुरुष थे। राष्ट्रभाषा परिषद का कार्यालय, अपने भवन में जाने से पूर्व लगभग १० वर्षों तक साहित्य-सम्मेलन में चलाया गया। उसके मंत्री और बाद में निदेशक के रूप में उनका आवास भी सम्मेलन-भवन में ही रहा। इस अवधि में उन्होंने सम्मेलन के हित में भी अनेक मूल्यवान कार्य किए। सम्मेलन पत्रिका ‘साहित्य’ का भी संपादन किया। वे सम्मेलन के पत्रों पर अपने हाथों से टिकट साटने से लेकर उन्हें डाक-पेटी में डालने तक का कार्य करने में संकोच नहीं करते थे। भारत सरकार के ‘पद्म-भूषण’ सम्मान से विभूषित शिवजी ने अनेक साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ कथा-साहित्य को अनेकों ग्रंथ दिए। बिहार का साहित्यिक इतिहास और भारत के अनेक महापुरुषों की जीवनी लिखी। देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद की आत्म-कथा का संपादन भी किया। राष्ट्रभाषा परिषद ५० से अधिक शोध-ग्रंथों का संपादन और प्रकाशन किया।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, बच्चा ठाकुर, डा बी एन विश्वकर्मा, डा ब्रह्मानन्द पाण्डेय, सदानंद प्रसाद, आनंद किशोर मिश्र, बाँके बिहारी साव, कमलनयन श्रीवास्तव तथा चंदा मिश्र ने भी आचार्य शिवजी को अपनी भावांजलि दी।इस अवसर पर आयोजित लघु-कथा-गोष्ठी में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘सलोनी’ शीर्षक से डा ध्रुब कुमार ने ‘क्षितिज की सार्थकता’, डा पुष्पा जमुआर ने ‘छाते की ओट’, सिद्धेश्वर ने ‘माँ’, चितरंजन लाल भारती ने ‘साहब को बधाई’, डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘अजीब कहानी’, कुमार अनुपम ने ‘संतुष्टि’, जय प्रकाश पुजारी ने ‘कुकंठ कवि’, अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘भूल हुई’, डा कुंदन कुमार सिंह ने ‘दिव्यांग’ तथा अजित कुमार ने ‘यमराज से ज्ञान’ शीर्षक से अपनी अपनी लघु-कथाओं के पाठ किए।डा चंद्रशेखर आज़ाद, वंदना प्रसाद, दुःख दमन सिंह, अमन वर्मा, कुमार गौरव, मनोज कुमार, श्रीबाबू, राजेश राज, पवन कुमार, अमित कुमार पाण्डेय आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन डा शालिनी पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया।