पटना, ११ अगस्त। कवयित्री अभिलाषा सिंह भाव-संपदा और कवित्त-शक्ति से संपन्न एक अत्यंत प्रतिभाशाली रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में कविता स्वयं अपने को अभिव्यक्त करती है। अपने प्रथम काव्य-संग्रह में ही इन्होंने एक सर्वथा संवेदनशील और परिपक्व कवयित्री होने का परिचय दिया है। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि अभिलाषा जी की ‘अनुमेघा’ स्वयं में कविता की पूरी परिभाषा है।यह बातें, गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में ‘गीतों के राज कुमार’ के नाम से सुख्यात कवि गोपाल सिंह नेपाली की जयंती के अवसर पर आयोजित पुस्तक लोकार्पण-समारोह एवं गीत-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। नेपाली को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि ‘मेरा धन है स्वाधीन कलम’ के अमर रचनाकार, कविवर नेपाली, विलक्षण प्रतिभा के, स्वाभिमानी और राष्ट्रभक्त कवि थे। वे प्रेम और स्फूरण के अमर गायक थे। उनके गीतों में देश-भक्ति और सारस्वत ऋंगार। वे कलम से क्रांति का विगुल फूँकने वाले तेजस्वी कवि थे। भारत-चीन युद्ध के दौरान, देश-जागरण के उनके गीतों के कारण, उन्हें ‘वन मैन आर्मी’ कहा जाने लगा था। उनकी लेखनी से गीतों की निर्झरनी बहती थी। वे सही अर्थों में गीतों के राज कुमार थे। अपने समय के वे सबसे लोकप्रिय कवि थे।डा सुलभ ने कहा कि, नेपाली जी शब्दों, भावों और काव्य-कल्पनाओं के हीं नहीं ‘स्वाभिमान’ के भी धनी थे। उन्होंने कभी भी अपने स्वार्थ में, न तो किसी की निंदा और न हीं किसी की वंदना ही की। अपनी इन पंक्तियों में ही अपने चरित्र का परिचय दिया कि, “लिखता हूँ अपनी मर्ज़ी से/ बचता हूँ कैंची दर्ज़ी से/ आदत न रही कुछ लिखने की निंदा- वंदन ख़ुदगर्ज़ी से/ तुम दलबंदी में लगे रहे, यह लिखने में तल्लीन कलम/ मेरा धन है स्वाधीन कलम”। नेपाली की यह पंक्तियाँ संसार के सभी नेक कवियों के संकल्प की अभिव्यक्ति है।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, आचार्य विजय गुंजन, डा इंद्रकांत झा, बच्चा ठाकुर, डा रश्मि मिश्र, डा बी एन विश्वकर्मा, आनंद किशोर मिश्र कवयित्री की पुत्री आकांक्षा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित गीत-गोष्ठी का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने नेपाली के अत्यंत लोकप्रिय गीत ‘पिकबैनी मृग नयनी तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है/ रग रग में इतने रंग भरे, रंगीन चुनरिया झूठी है” का सस्वर गान किया। डा ब्रह्मानन्द पाण्डेय, कुमार अनुपम, कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय, मधुरानी लाल, पूनम सिन्हा श्रेयसी, तलअत परवीन, मोईन गिरीडीहवी,डा विनय कुमार विष्णुपुरी, पंकज प्रियम,लता प्रासर, सिद्धेश्वर, प्रीति सुमन, श्याम बिहारी प्रभाकर, सदानंद प्रसाद, नवीन कुमार सिंह, अर्जुन प्रसाद सिंह, नीरव समदर्शी, आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी सुमधुर पाठ किया।मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन बाँके बिहारी साव ने किया।कवयित्री मनोरमा तिवारी, डा रत्नावली कुमारी, डौली बागड़िया अनिल, सच्चिदानंद शर्मा, शिवानंद गिरि, चितरंजन भारती, ओम् प्रकाश वर्मा, मंजू रानी, अश्विनी कुमार, प्रेम अग्रवाल, चंद्रशेखर यादव, प्रभुनाथ तिवारी, श्री बाबू, अरुण कुमार श्रीवास्तवराम प्रिय कुमार निशी कुमारी, संतोष कुमार सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे