पटना, १३ अगस्त। मन को अंतर तक छू लेने वाली कहानी ‘गुड़ का ढेला’ बिहार की एक चर्चित गणिका को पावन और आदरणीया बना देती है। एक कथाकार की यही शक्ति है कि वह अपने सामर्थ्य से मिथ्या धारणाओं का नाश करे, और ऐतिहासिक पात्रों को लेकर, समाज में वह स्थान दिलाए, जो उन्हें नही मिल पाया। एक समर्थ कथाकार और कवि में समाज की दृष्टि में परिवर्तन लाने का निस्सीम सामर्थ्य होता है। समाज की दृष्टि बदलती है तो प्रवृत्तियाँ भी बदलती है, पूरा समाज बदलता है।यह बातें, शनिवार को, अनुवाद-साहित्य के मनीषी विद्वान और उत्तर-छायावाद के एक स्तुत्य कवि पं हंस कुमार तिवारी की जयंती पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह और लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि चर्चित कथाकार चितरंजन भारती के इस लोकार्पित कहानी संग्रह ‘गुड़ का ढेला’ में शीर्षक कहानी की भाँति ही संग्रह की सभी १७ कहानियाँ पाठकों के मन को झकझोरती और कुछ नया प्रदान करती है। कहानियाँ रोचक, ज्ञान-वर्द्धक और प्रेरणास्पद हैं।पं हंस कुमार तिवारी को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि तिवारी जी उत्तर छायावाद काल के गीत-चेतना के अग्रणी कवियों में एक थे। तिवारी जी ने बंगला साहित्य के अनुवाद के साथ हीं कई अनेक मौलिक साहित्य का सृजन कर हिन्दी साहित्य में एक बड़ा अवदान दिया। वे हिन्दी में अनुवाद-साहित्य के पुरोधा साहित्यकारों में परिगणित होते हैं, जिन्होंने ‘अनुवाद’ को साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई। उनका व्यक्तित्व बहु-आयामी था। उन्होंने गद्य और पद्य में समान अधिकार से लिखा। उनकी भाषा सरल किंतु आकर्षक थी। वे एक सुकुमार कवि, सुयोग्य संपादक, सफल नाटक-कार और अनुवाद-साहित्य के सिद्ध साहित्य मनीषी थे। बंगला साहित्य को हिंदी में लोकप्रिय बनाने में उनका अद्भुत योगदान रहा। उन्होंने विश्वकवि रवींद्र नाथ ठाकुर, शरतचंद्र, विमल मित्र, शंकर समेत अनेक बंगला-साहित्यकारों की लोकप्रिय रचनाओं का हिन्दी अनुवाद किया।इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, पं तिवारी बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के साहित्य मंत्री के रूप में भी सेवाएँ दी थी। वे बिहार राष्ट्र-भाषा परिषद के निदेशक भी रहे। अनुवाद-विधा के वे एक आदर्श साहित्यकार थे। अनुवाद में उन्होंने बांगला की आत्मा को हिन्दी में कहीं भी क्षय नही होने दिया।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, श्याम जी सहाय, डा ध्रुव कुमार, रमेश कँवल, बच्चा ठाकुर, ब्रह्मानंद पाण्डेय, डा बी एन विश्वकर्मा,सदानंद प्रसाद, दीपक नारायण बरनवाल, कुमार अनुपम, प्रो सुशील कुमार झा, बाँके बिहारी साव, डा शालिनी पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, जय प्रकाश पुजारी, आदर्श रंजन, नरेंद्र कुमार, रामेश्वर चौधरी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में वरिष्ठ कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने ‘न लिखने का कारण’, डा पुष्पा जमुआर ने ‘आत्म-हत्या’, कुमार अनुपम ने ‘अमृत महोत्सव’, श्याम बिहारी प्रभाकर ने ‘छल’, सदानंद प्रसाद ने ‘लालच बुरी बला’, प्रेमलता सिंह राजपुत ने ‘हरियाली’, लता प्रासर ने ‘मरा हुआ आदमी, श्रीकांत व्यास ने ‘शहीद की माँ’, विनोद सम्राट ने ‘लिव इन रिलेशनशिप तथा अजित कुमार ने ‘कल्पवृक्ष’ शीर्षक से अपनी कथाओं का पाठ किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया।मशहूर शायरा तलअत परवीन, प्रियंका प्रिया, कुमारी कांति, वंदना प्रसाद, डा कुंदन लोहानी, नीरव समदर्शी, अर्जुन प्रसाद सिंह, शिवानंद गिरि, कमल नयन श्रीवास्तव, राजेश राज, कुमार गौरव, दुःखदमन सिंह, अमन वर्मा, श्याम किशोर विरागी, बाल गोविंद सिंह रवि रंजन कुमार सिंह समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।