पटना, १९ अगस्त। मैथिली और हिन्दी के यशस्वी कवि आरसी प्रसाद सिंह, काव्य-साहित्य में, बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में, दिनकर, प्रभात, वियोगी, नेपाली और जानकी बल्लभ शास्त्री के साथ परिगणित होते हैं । वे प्रकृति, प्रेम, जीवन और यौवन के महाकवि थे। उनकी रचनाओं में जीवन के प्रति अकुँठ श्रद्धा, उत्साह और सकारात्मकता दिखाई देती है। ‘जीवन का झरना’ का वह महान गायक अपनी इन पंक्तियों में जीवन के संदर्भ में भारत के उस शाश्वत दर्शन का अद्भुत चित्रण प्रस्तुत करता है, जिसमें मानव-जीवन अपनी पूरी सार्थकता में परिभाषित होता है – “जीवन क्या है? निर्झर है/ मस्ती ही इसका पानी है/ सुख-दुःख के दोनों तीरों से / चल रहा राह मनमानी है”।यह बातें शुक्रवार को महाकवि आरसी और महान हिन्दी-सेवी आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जयंती एवं साहित्यिक त्रैमासिक ‘नया भाषा भारती संवाद’ के नए अंक के लोकार्पण-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि की १०८वीं जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और काव्य-संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने आचार्य द्विवेदी को स्मरण करते हुए कहा कि खड़ीबोली हिन्दी को संवारने और सजाने में द्विवेदी जी का योगदान अद्वितीय है। भारतेंदु और महावीर प्रसाद द्विवेदी के पश्चात हिन्दी साहित्य के उन्नयन में आचार्य हज़ारी प्रसाद का स्थान सबसे अधिक आदर के साथ लिया जाता है।इस अवसर पर स्मृति-शेष साहित्यकार एवं सम्मेलन के पूर्व उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त द्वारा स्थापित साहित्यिक त्रैमासिक ‘नया भाषा भारती संवाद’ के २२ वें वर्ष के चौथे अंक का भी लोकार्पण किया गया। पत्रिका पर अपना विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि यह परितोष की बात है कि गुप्त जी के निधन के पश्चात, पत्रिका का यह प्रथम अंक अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को जीवित रखने में सफल सिद्ध हुआ है। इस हेतु गुप्त के दोनों प्रबुद्ध सुपुत्र आलोक कुमार गुप्त एवं विवेक कुमार गुप्त विशेष बधाई के पात्र हैं, जिनके उद्यम और पुरुषार्थ से इसका प्रकाशन संभव हुआ है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह पत्रिका नियमित प्रकाशित होती रहेगी।इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि आरसी बाबू अत्यंत विनम्र स्वभाव के सरल व्यक्ति थे। उनकी रचनाओं में वही सरलता और जीवंतता थी। वे अपने समय के महत्त्वपूर्ण कवियों में अग्र-पांक्तेय थे। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा ध्रुव कुमार, डा मेहता नगेंद्र सिंह, स्व गुप्त के पुत्र आलोक कुमार गुप्त, विवेक कुमार गुप्त, डा प्रज्ञा गुप्त, प्रो सुखित वर्मा, बाँके बिहारी साव, मोनिका गुप्ता तथा प्रो बी एन विश्वकर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, शायर आरपी घायल, ब्रह्मानन्द पाण्डेय, शायरा तलअत परवीन, कुमार अनुपम, चितरंजन भारती, डा शालिनी पाण्डेय, डा सुषमा कुमारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा कुंदन कुमार, अर्जुन कुमार सिंह, अनिल कुमार झा, संतोष कुमार सिंह, शशिकांत कुमार, अजित कुमार आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ कर काव्य-संध्या को सुगंधित किया। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।डा श्रवण कुमार, देवेंद्र सिंह आज़ाद, प्रो रामेश्वर पंडित, कुमार गौरव, चंद्रशेखर आजाद, अनुष्का निधि, राम किशोर सिंह विरागी, विभा कुमारी, रूपक शर्मा, शैलेश श्रीवास्तव, समेत बड़ी संख्या में, प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।