सीनियर एडिटर -जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना ::बेरोजगार लोग सरकारी नौकरी की मांग कर रहे हैं और सरकार के लोग रोजगार देने की बात करते है। जबकि रोजगार तो अपने स्तर से बेरोजगार लोग कर सकते हैं, लेकिन सरकारी नौकरी सरकार दे सकती है , जबकि सरकार के लोग आर्थिक स्थित की रोना रोते हुए नियुक्ति नहीं करते हैं। दूसरी तरफ सरकार रिक्त पदों के विरुद्ध पद को परिवर्तित कर अनुबंध पर पद को भरते है तो कही डाटा एंट्री ऑपरेटरों की बहाली करती है या कर रही है। ऐसी स्थिति में बेरोजगारी खत्म करना या रोजगार देना ? है।सरकारी नौकरियों में आरक्षण भारत के संविधान में प्रदत्त है। लेकिन सरकार द्वारा आरक्षण का सीमा धीरे-धीरे बढ़ाया जाता रहा है। मुझे याद है कि आरक्षण शुरू में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को दिया गया था। लेकिन 1993 से केन्द्रीय सेवाओं में ओबीसी को, राज्य में 1978 में पिछड़ों और अति पिछड़ों को और अब केन्द्र सरकार 2019 से गरीब सवर्णों को भी आरक्षण दिया है। इतना ही नहीं, अब तो लोगों को शिक्षा में भी आरक्षण दिया जा रहा है।अब देखने की बात है कि जिन लोगों को सरकारी नौकरी में आरक्षण मिल रहा है, उनमें भी योग्य उम्मीदवार नहीं मिलने के कारण, कई पद रिक्त रह जाते है, क्योंकि सरकार प्रावधान कर रखा है कि आरक्षण वाले पद को सामान्य कैटेगरी से नहीं भरा जायेगा।आरक्षण के लिए बिहार में कोटा निर्धारित (प्रतिशत के आधार पर) किया गया है, जिसमें अनुसूचित जाति के लिए- 16%, अनुसूचित जनजाति के लिए- 1%, पिछड़ा वर्ग के लिए- 12%, अति पिछड़ा के लिए- 18%, पिछड़ा महिला के लिए- 3% निर्धारित है। केन्द्र सरकार सवर्ण के लिए अलग प्रतिशत निर्धारित किया है। बिहार में सवर्ण को छोड़ कर सभी आरक्षण बालों के लिए यह व्यवस्था रखी गई है कि जो नियुक्ति प्रक्रिया में अच्छे नम्बर लाते है तो उनको सामान्य कैटेगरी के लिए सुलभ सीटों में नियुक्त किया जाएगा और जो आरक्षण कोटा के तहत नम्बर लाता है तो उन्हें आरक्षण कोटा में होगी।मुझे यह भी याद है कि पहले राज्य सरकार जब किसी को सरकारी नौकरियाँ देती थी तो उसके चरित्र, पारिवारिक गतिविधियों की जानकारी पुलिस के माध्यम से करा कर ही देती थी। लेकिन अब अनुबंध की व्यवस्था के तहत ऐसा कहाँ हो रहा है।अब प्रश्न उठता है कि ऐसी स्थिति में सरकार किस तरह सरकारी नौकरी के माध्यम से बेरोजगारी खत्म करेगी और कब करेगी। देखा जाय तो वर्तमान समय में लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी राजनीति सुधारने और आंतरिक कलह में ही उलझी रह रही है। एक दूसरे पर, राजनीतिक और निजी बहसों में लगी हुई है।
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