पटना, १ सितम्बर। हिन्दी दिवस की सार्थकता तभी सिद्ध होगी, जब ‘हिन्दी’ देश की ‘राष्ट्रभाषा’ घोषित हो। १४ सितम्बर, १९४९ को, जिस दिन भारत की संविधान सभा ने हिन्दी को देश की सरकार के कामकाज की भाषा, अर्थात ‘राजभाषा’ बनाने का निर्णय लिया था, जिसके उपलक्ष्य में, पूरे देश में इस दिन ‘हिन्दी-दिवस’ मनाया जाता है, वह भी आज तक कार्यान्वित नहीं हो पाया। इसलिए कि उसी निर्णय में दो परंतुक जोड़ कर ‘अंग्रेज़ी’ को ही ‘राजभाषा’ बनाए रखा गया। स्वतंत्रता के ७५ वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी भारत अपने देश की किसी भाषा को ‘राष्ट्र भाषा’ घोषित नहीं कर सका है। समय आ गया है कि ‘राजकाज की भाषा’ के स्थान पर अब सीधे-सीधे राष्ट्रीय-ध्वज और राष्ट्रीय चिन्ह की भाँति देश की एक ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित हो। वर्ष २०२३ का १४ सितम्बर इसके लिए श्रेष्ठ दिन हो सकता है। तभी सच्चे अर्थों में यह दिन ‘हिन्दी-दिवस’ के रूप में मनाने योग्य होगा।यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक चौदस मेला के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही, जिसका खचाखच भरा सभागार ने तालियों की गड़ाड़ाहट के साथ स्वागत किया।समारोह का उद्घाटन करते हुए, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया और कहा कि वे इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से बात करेंगे। उन्होंने कहा कि सुरत में इस वर्ष हिन्दी दिवस पर एक भव्य आयोजन हो रहा है, जिसका उद्घाटन भारत के गृह मंत्री मीट शाह करेंगे। इस महा-समागम में हिन्दी के विषय गम्भीर चिंतन होगा। उसमें निश्चित ही इस संदर्भ में कोई बड़ा संकल्प लिया जाएगा। हमने राष्ट्रीय-पशु तक तो बना लिया किंतु राष्ट्रभाषा नही बना सके, यह हमारी सोंच की कमी है, दासता की मानसिकता है।उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र एक विधान, एक राष्ट्र-ध्वज, एक राष्ट्र-चिन्ह होचुका तो शीघ्र ही एक राष्ट्र-भाषा भी होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। इस अवसर पर श्री चौबे ने हिन्दी के चर्चित कवि डा पंकज वसंत के काव्य-संग्रह ‘अबकी बार मधुमास मौन है’ का लोकार्पण भी किया।समारोह की मुख्यअतिथि और चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के विद्यार्थियों के मन में एक हीन-भावना आ रही है। वे ये समझने लगे हैं कि अंग्रेज़ी के विना हम पीछे रह जाएँगे। इस कारण से हिन्दी के प्रति जो उनके मन में आदर की भावना होनी चाहिए थी वह नहीं रह जाती। इसलिए यह आवश्यक है कि बार-बार हिन्दी दिवस मनाया जाना चाहिए।बिहार के उद्योगमंत्री समीर कुमार महासेठ ने कहा कि आज का दिन हिन्दी के लिए विशेष चिंतन का है। साहित्य जोड़ने का कार्य करता है। हमें अपनी भाषा पर गौरव करना चाहिए। हम जहां भी जाते हैं, यह कहा करते हैं कि सदा जोड़ने का कार्य करें, जो साहित्य का ही कार्य है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ लेखक जिया लाल आर्य, डा कल्याणी कुसुम सिंह, पंकज वसंत, आराधना प्रसाद, अभिजीत कश्यप तथा कुमार अनुपम ने भी अपने विचार व्यक्त किए।अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा मधु वर्मा ने किया। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने किया।इस अवसर पर, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, आरपी घायल, डा पुष्पा जमुआर, रमेश कँवल, पूनम आनंद, डा शालिनी पाण्डेय, लता प्रासर, डा मेहता नगेंद्र सिंह,डा सुषमा कुमारी, डा रेखा भारती मिश्र, मोईन गिरिडिहवी, सुशील झा, डा सुधा सिंह, जय प्रकाश पुजारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, ओमप्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, श्याम बिहारी प्रभाकर, चंदा मिश्र, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा सीमा रानी, शम्स जबीं, ज्ञानेश्वर शर्मा, डा पंकज प्रियम, शुभ चंद्र सिन्हा, डा मुकेश कुमार ओझा, डा बी एन विश्वकर्मा, अशोक कुमार, सदानंद प्रसाद, बाँके बिहारी साव, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त, नीरव समदर्शी, डा अर्चना त्रिपाठी, अर्जुन प्रसाद सिंह, आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।पुस्तक मेला के उद्घाटन के बाद, पुस्तक-प्रेमियों की भींड़ उनके उत्साह का परिचय दे रही थी। केवल हिन्दी प्रेमी ही नहीं, बड़ी संख्या में विद्यार्थी भी मेले का लाभ उठा रहे हैं, क्योंकि नेशनल बूक ट्रस्ट ने छात्रोपयोगी पुस्तकों की भी एक बड़ी दीर्घा लगा रखी है। मेले में २० प्रतिशत से लेकर ६० प्रतिशत तक की छूट में पुस्तकें मिल रही हैं। सम्मेलन द्वारा अनेक दुर्लभ पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है।