पटना, २ सितम्बर। अखिल भारत वर्षीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक प्रधानमंत्री राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन हिन्दी के प्रथम महापुरुष थे, जिन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक-सम्मान ‘भारत-रत्न’ से विभूषित किया गया था। राष्ट्र और राष्ट्रभाषा के अनन्य-सेवक टण्डन जी ने भारत की स्वतंत्रता से लेकर हिन्दी के उन्नयन में वही योगदान दिया था, जो भगीरथ ने गंगा को धरती पर उतारने का कार्य किया। उन्होंने अपना सर्वश्व राष्ट्र को अर्पित कर दिया था। एक सांसद के रूप में भी उन्हें जो कुछ भी प्राप्त होता था, उसे वो दान कर देते थे।यह बातें, शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, १ सितम्बर से आरंभ हुए हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक-चौदस मेला के दूसरे दिन आयोजित राजर्षि टंडन, बाबू महेश नारायण एवं नृपेंद्रनाथ गुप्त जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने, बिहार राज्य की स्थापना के लिए आंदोलन का सूत्रपात करनेवाले और बिहार से समाचार-पत्र ‘बिहार’ और ‘बिहार टाइम्स’ का प्रकाशन आरंभ करने वाले कवि-पत्रकार बाबू महेश नारायण को स्मरण करते हुए, उन्हें मुक्त छंद का प्रथम कवि बताया। उन्होंने कहा कि हिन्दी मासिक पत्र ‘बिहार-बंधु’ में १३ अक्टूबर १८८१ के अंक में, ‘स्वप्न-भंग’ शीर्षक से प्रकाशित उनकी लम्बी कविता, मुक्त-छंद की प्रथम कविता है, जो निराला की ‘जूही की कली’ से लगभग ३६ वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई थी। तब उनकी उम्र मात्र २३ वर्ष की थी।डा सुलभ ने सम्मेलन के पूर्व उपाध्यक्ष और ‘नया भाषा-भारती संवाद’ के संस्थापक-संपादक नृपेंद्रनाथ गुप्त को भी श्रद्धा-पूर्वक स्मरण करते हुए उन्हें ‘राष्ट्र-भाषा-प्रहरी’ बताया। उन्होंने कहा कि गुप्त जी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे भारत की प्राण-भाषा ‘हिन्दी’ के प्रति संपूर्णतया समर्पित थे। दक्षिण भारत में भी इनकी विशेष प्रसिद्धि थी। संस्कृत और हिन्दी के मनीषी विद्वान और लिंगायत समाज के सर्वमान्य स्वामी डा शांतावीर महास्वामी से, जो कोलाद मठ, बंगलुरु (कर्नाटक) के पीठाधीश्वर भी हैं, उनका बहुत ही आत्मीय संबंध था। समारोह का उद्घाटन करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग की पूर्व अध्यक्ष डा दीप्ति शर्मा त्रिपाठी ने कहा कि, टण्डन जी एक ऐसे हिन्दी-सेवी महापुरुष हैं, जिनपर भारत को गौरव है। उन्होंने हिन्दी की तब सेवा की, जब हिन्दी अपनी बाल्यावस्था में थी।पटना विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के पूर्व अध्यक्ष रमेश चंद्र सिन्हा, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा शशि भूषण कुमार सिंह, मार्कण्डेय शारदेय, कुमार अनुपम, नृपेंद्रनाथ गुप्त के पुत्र विवेक कुमार गुप्त, कवि बच्चा ठाकुर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, चंदा मिश्र, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, चित रंजन भारती, पं गणेश झा, जय प्रकाश पुजारी, सदानंद प्रसाद आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने किया।इसके पूर्व आज से सम्मेलन में ‘दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर’ भी आरंभ हुआ। शिविर के संयोजक और मुख्य आचार्य डा मुकेश कुमार ओझा ने कहा कि ‘संस्कृत’ अत्यंत सरल और सहजता से सीखी जाने वाली भाषा है। उन्होंने कहा कि मात्र दस दिनों के इस शिविर में प्रतिभागियों को संस्कृत बोलना सिखा दिया जाएगा।आज से विद्यार्थियों के लिए प्रतियोगिताओं के आयोजन भी आरंभ हो गए। आज श्रुतिलेख-प्रतियोगिता आयोजित हुई, जिसमें संत जोसेफ कौंवेंट है स्कूल, जेठुली, संत जौंस पब्लिक हाई स्कूल, पटना, डीएवी पब्लिक स्कूल, पटना, किलकारी, बिहार बाल भवन, सैदपुर, सुदर्शन सेंट्रल स्कूल, पटना सिटी, गंगा देवी महिला महाविद्यालय, कंकड़बाग, राजकीय मध्य विद्यालय, लोहिया नगर, सुदर्शन सेंट्रल स्कूल, चानमारी रोड तथा प्रभुतारा स्कूल, सकरी गली के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। प्रतियोगिताओं में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को स्वर्ण, रजत और कांस्य-पदक के साथ क्रमशः एक हज़ार रूपए, सात सौ रूपए तथा पाँच सौ रूपए की पुरस्कार राशि, पखवारा के समापन-सह-पुरस्कार वितरण समारोह में दी जाएगी। सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र भी दिया जाएगा।इस अवसर पर, प्रो सुशील झा, डा सुषमा कुमारी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा सुरेश द्विवेदी, डा वीरेंद्र कुमार सिंह, निर्मला सिंह, डौली कुमारी, कुमारी लूसी, शुभांकरी, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, उत्तर उत्तरायण, कीर्त्यादित्य, अमित कुमार सिंह, अजित कुमार बाबा आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।पुस्तक-मेले के दूसरे दिन आज हिन्दी-प्रेमियों के साथ विद्यार्थियों की भी अच्छी भागीदारी हुई। कल पखवारा के तीसरे दिन दस बजे से विद्यार्थियों के लिए ‘व्याख्यान-प्रतियोगिता’ तथा ४ बजे से डा कामिल बुल्के जयंती आयोजित होगी।