पटना, ३ सितम्बर। वेल्जियम के ईसाई फादर और संस्कृत, हिन्दी और तुलसी के महान भक्त डा कामिल बुल्के ने भाषा के संबंध में संसार को एक बड़ा सच बताया था। उन्होंने कहा था कि ‘संस्कृत’ भाषाओं की ‘महारानी’, ‘हिन्दी’ बहुरानी और ‘अंग्रेज़ी’ नौकरानी है। उन्होंने संस्कृत में स्नातकोत्तर और हिन्दी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। रामकथा की उत्पत्ति और विकास पर अपना शोध किया था और यह निष्कर्ष दिया था कि महर्षि बाल्मीकि विरचित ‘रामायण’ के पात्र श्री राम काल्पनिक नहीं ऐतिहासिक हैं।यह बातें, शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, १ सितम्बर से आरंभ हुए हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक-चौदस मेला के तीसरे दिन आयोजित डा कामिल बुल्के जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि बिहार से डा बुल्के का अत्यंत गहरा संबंध था। वे एक स्नातक अभियन्ता थे। १९३६ में जब वे भारत आए तो पहले बंबई पहुँचे किंतु कुछ ही दिनों के बाद वे बिहार के गुमला आ गए। वहीं उन्होंने हिन्दी, ब्रज और अवधि भाषा सीखी। तुलसी के मानस साहित उनके सभी ग्रंथ पढ़े। वही उन्हें संस्कृत सीखने की प्रेरणा मिली और उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर किया। बाल्मीकि रामायण, वेद, उपनिषद, पुराण आदि प्राच्य-ग्रंथों का अध्ययन किया और तब उन्हें भान हुआ कि आज का भारत तो अपनी गौरवशाली प्राचीन ज्ञान और परंपरा को भूल ही चुका है, जिसका स्मरण दिलाना आवश्यक है। तभी से उन्होंने एक व्रत के रूप संस्कृत और हिन्दी का प्रचार आरंभ किया। हिन्दी भाषा के उन्नयन में उनका अभूतपूर्व योगदान है। एक विदेशी और एक दूसरे धर्म के गुणी पुरोहित होने के बाद भी उन्होंने जो भारत के ज्ञान की उच्च परंपरा के पुनरोत्थान के लिए जो किया वह अद्वितीय और अतिप्रणम्य है।समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार लोकसेवा आयोग के सदस्य इम्तियाज़ अहमद करीमी ने कहा कि हिन्दी प्रेम की भाषा है। सभी भारतियों को इससे प्रेम करना चाहिए। हिन्दी के साहित्यकारों को लिखने और बोलने में सावधानी बरतनी चाहिए। शुद्ध बोलना चाहिए। इससे अगली पीढ़ी लाभान्वित होगी। हमसे ही अगली पीढ़ी सीखती है। यदि हम स्वयं शुद्ध नहीं बोलेंगे तो नई पीढ़ी कैसे शुद्ध बोलेगी?सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कवि बच्चा ठाकुर, डा पूनम आनंद, डा सुमेधा पाठक, डा शालिनी पांडेय, निर्मला सिंह, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, चंदा मिश्र, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, चित रंजन भारती, सदानंद प्रसाद ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने किया।आज विद्यार्थियों के लिए व्याख्यान-प्रतियोगिता आयोजित हुई,जिसमें ‘हिन्दी के साहित्यकार’ विषय पर विद्यार्थियों ने बहुत ही सुंदर व्याख्यान दिए। इस प्रतियोगिता में कौलेज ऑफ कौमर्स, पटना, संत जोसेफ कौंवेंट है स्कूल, जेठुली, किलकारी, बिहार बाल भवन, सैदपुर, रवींद्र बालिका विद्यालय,पटना, सुदर्शन सेंट्रल स्कूल, पटना सिटी, सर गणेश दत्त पाटलिपुत्र उच्च माध्यमिक विद्यालय, पटना, इसलामिया टी टी बी एड कौलेज, पटना के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। प्रतियोगिताओं में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को स्वर्ण, रजत और कांस्य-पदक के साथ क्रमशः एक हज़ार रूपए, सात सौ रूपए तथा पाँच सौ रूपए की पुरस्कार राशि, पखवारा के समापन-सह-पुरस्कार वितरण समारोह में दी जाएगी। सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र भी दिया जाएगा।२ सितम्बर से आरंभ हुए ‘दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर’ के दूसरे दिन आज संस्कृत में वार्तालाप का परिचय खंड संपन्न हुआ, जिसमें शिविर के मुख्य आचार्य डा मुकेश कुमार ओझा ने सरल पंक्तियाँ बोलकर परिचय लेने-देने की शिक्षा दी।इस अवसर पर, दा ध्रुब कुमार, प्रो सुशील झा, डा सुषमा कुमारी, दा वीणा कुमारी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, अर्चना भारती, नरेंद्र झा, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, रामाशीष ठाकुर, राम प्रसाद ठाकुर, डौली कुमारी, उत्तर उत्तरायण, कीर्त्यादित्य, अमन वर्मा, अमित कुमार सिंह, रवींद्र कुमार सिंहा, अजित कुमार बाबा, दुःखदमन सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।पुस्तक-मेले के तीसरे दिन भी विद्यार्थियों, अभिभावकों और हिन्दी-प्रेमियों की भारी उपस्थिति रही। कल पखवारा के चौथे दिन दस बजे से विद्यार्थियों के लिए ‘निबंध-लेखन -प्रतियोगिता’ तथा ४ बजे से ब्रज नन्दन सहाय ब्रज वल्लभ एवं डा विष्णु किशोर झा बेचन की जयंती आयोजित होगी।