पटना, ४ सितम्बर। आधुनिक हिन्दी को प्रथम मौलिक उपन्यास प्रदान करने वाले महान हिन्दी-सेवी श्री ब्रजनंदन सहाय ब्रजवल्लभ’, एक ऐसे मनीषी साहित्यकार थे, जो अपनी कठोर और अकुंठ साधना के कारण बीसवीं सदी के साहित्याकाश में उषाकाल के सूर्य की भाँति प्रणम्य माने जानते हैं। वे अपने युग में साहित्यिक प्रतिभा के सर्वाधिक प्रज्ज्वल-प्रखर दृष्टांत थे। उन्होंने खड़ीबोली के प्रथम मौलिक उपन्यास’सौंदर्योपासक’ सहित ढाई दर्जन से अधिक मूल्यवान ग्रंथों का प्रणयन कर, हिन्दी को समृद्ध किया। वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति, नागरी प्रचारिणी सभा, आरा के महामंत्री तथा नागरी हितैषी पत्रिका के संपादक भी रहे। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद ने वर्ष १९५० में संपन्न हुए अपने प्रथम वार्षिकोत्सव में उनका भव्य सम्मान किया था।यह बातें, रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, १ सितम्बर से आरंभ हुए हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक-चौदस मेला के चौथे दिन आयोजित डा ब्रजनंदन सहाय ‘ब्रजवल्लभ’ एवं डा विष्णुकिशोर झा ‘बेचन’ जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि ब्रजवल्लभ जी का हिन्दी, अंग्रेज़ी, फ़ारसी और बंगला भाषाओं पर गहरा अधिकार था। उन्होंने अनेक बंगला साहित्य का हिन्दी अनुवाद कर, अनुवाद-साहित्य में भी मूल्यवान अवदान दिया। उन्होंने ही प्रथम बार मैथिल-कोकिल विद्यापति के साहित्य पर गम्भीर लेखन किया था और हिन्दी काव्य-साहित्य में उनको प्रतिष्ठा दिलाई थी और यह सिद्ध किया था कि विद्यापति ही भक्ति-काल के प्रथम कवि हैं। वे हिन्दी-साहित्य के एक ऐसे वट-वृक्ष थे, जिसकी प्राण-वायु प्रदान करने वाली शीतल छाया में साहित्य के अनेक मूल्यवान अध्याय लिखे गए। उनसे खडीबोली समृद्ध और धन्य हुई। उन्होंने सम्मेलन के एक अन्य अध्यक्ष डा विष्णु किशोर झा ‘बेचन’ को भी उनकी जयंती पर श्रद्धापूर्वक नमन किया तथा उन्हें पिछली सदी का यशस्वी समालोचक बताया।समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमंत कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि साहित्यकार स्वतः देश-सेवक और समाजसेवक ही नहीं आचार्य भी होते हैं। उनको स्मरण करना नई पीढ़ी का नित्य कर्तव्य है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कवि बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम, डा शालिनी पांडेय, निर्मला सिंह, डा अर्चना त्रिपाठी, डा विधुशेखर पाण्डेय, अरुण कुमार श्रीवास्तव, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, चंदा मिश्र तथा सदानंद प्रसाद ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन बाँके बिहारी साव ने किया।आज विद्यार्थियों के लिए निबन्ध-लेखन-प्रतियोगिता आयोजित हुई,जिसमें ‘मेरे प्रिय साहित्यकार’ विषय पर विद्यार्थियों ने निबन्ध लिखे। इस प्रतियोगिता में दिल्ली पब्लिक स्कूल, पटना, संत जोसेफ कौंवेंट है स्कूल, जेठुली, किलकारी, बिहार बाल भवन, सैदपुर, त्रिनीति ग्लोबल स्कूल, पटना, रेड कार्पेट हाई स्कूल, राजेंद्र नगर, टेंडर हार्ट विद्यालय, राजेंद्रनगर, पी एन एंगलो संस्कृत महाविद्यालय, पटना, राजकीय उच्च विद्यालय, लोहिया नगर, रवींद्र बालिका विद्यालय,पटना, सुदर्शन सेंट्रल स्कूल, पटना सिटी, इसलामिया टीटी बी एड कौलेज, पटना, राजकीय मध्य विद्यालय, कंकड़बाग के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।२ सितम्बर से आरंभ हुए ‘दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर’ के तीसरे दिन आज संस्कृत में कर्ता-ज्ञान की शिक्षा दी गई तथा उसका व्यवहारिक-अभ्यास कराया गया। शिविर के मुख्य आचार्य डा मुकेश कुमार ओझा ने कर्ता के विविध रूपों से सरल पंक्तियाँ बनाने का अभ्यास कराया।इस अवसर पर, संस्कृति कर्मी अभय सिन्हा, डा मधु वर्मा, डा सुलक्ष्मी कुमारी, आराधना प्रसाद, डा सुषमा कुमारी, डा रेखा भारती, डा कुमारी लूसी, वीणा कुमारी, उत्तर उत्तरायण, कीर्त्यादित्य, अमन वर्मा, अमित कुमार सिंह, रवींद्र कुमार सिंहा, अजित कुमार बाबा, दुःखदमन सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।पुस्तक-मेले के तीसरे दिन भी विद्यार्थियों, अभिभावकों और हिन्दी-प्रेमियों की भारी उपस्थिति रही। मेले में पत्रकार हृदय नारायण झा की सक्रिय पत्रकारिता के २५ वर्ष पूरे होने पर, उनके आलेखों की प्रदर्शिनी भी लगाई गई है।सम्मेलन-प्रांगण में, दर्शकों के मनोरंजन के लिए, नाट्य-संस्था ‘सूत्रधार’ के तत्त्वावधान में, नवाब आलम द्वारा लिखित और नीरज कुमार द्वारा निर्देशित, ‘जल ही जीवन है’ नामक नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति की गई। नाटक के कलाकारों शशि भूषण, रत्नेश,, दीपक, विकास, आर्यन, मनोहर,सुधीर, टीपू पांडेय के अभिनय को तालियों से सराहना की गई। कल पखवारा के पाँचवे दिन दस बजे से ‘बाल-कवि-सम्मेलन’ तथा ४ बजे से आचार्य श्यामनन्दन किशोर जयंती आयोजित होगी।