पटना, ६ सितम्बर। “चाहा तो बहुत मौत ने देना इसे शिकस्त/ ये ज़िंदगी की जंग थी, हारी नहीं गई” —– “उड़हली वन-उपवनों मेन शाम/ आ उतर छा गई तेरे नाम” — आदि रोम-पुलकित करने वाली पंक्तियों से आज सम्मेलन सभागार गए शाम तक स्पंदित होता रहा। साहित्य सम्मेलन में हिन्दी पखवारा के अंतर्गत आज, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में विराट कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था।सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने जब यह ग़ज़ल पढ़ी कि “दुश्मन से आजतक मेरी यारी नहीं गयी/ ये ऐसी बीमारी है, ये बीमारी नहीं गयी/ चाहा तो बहुत मौत ने देना इसे शिकस्त/ ये ज़िन्दगी की जंग थी हारी नहीं गयी”, तो सभागार तालियों से गूंज उठा। गीत के वरिष्ठ कवि आचार्य विजय गुंजन ने यह मधुर छंद पढ़ा कि “गुलमोहर चंपा जुही केसर/ फँस गए संध्या सुरभी के पर/ उड़हली वन-उपवनों में शाम/ आ उतर छा गई तेरे नाम”।डा शंकर प्रसाद का कहना था कि “रह जाये न मंज़िल मेरे पैरों को तरसती/ तक़दीर में शायद मेरी ताउम्र सफ़र है/ अहसास उसी रब की तरह ही है तुम्हारा/ आता न नज़र मुझको तू मौजूद मगर है”। कवयित्री श्वेता ग़ज़ल ने कहा कि “आसमानों पे घर बनाएँगे/ जिन परिन्दों में हौसला है अभी”। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर ने जीवन के एक स्वप्निल रूप का इन पंक्तियों में चित्रण किया- “जीवन-गागर या सागर की तृष्णा पगली मतवाली है/ भरने को तो बहुत भरा है/ फिर भी ख़ाली का ख़ाली है।”गीत के चर्चित कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने अपने इस गीत से कि “मैं प्रेम पथिक मन है व्याकुल/ आराम तनिक सा आए/ चित्र यदि प्यार की सरस फुहार की कुछ बुंदे पा जाए”। वरिष्ठ कवयित्री डा कविता सहाय, जय प्रकाश पुजारी, महेश्वर ओझा ‘महेश’, डा गीता सहाय, रामेश्वर नाथ मिश्र ‘विहान’, शुभचंद्र सिन्हा, शशिकान्त कुमार, कवयित्री चाँदनी समर, डा प्रतिभा रानी, कुमार अनुपम, डा अर्चना त्रिपाठी, अशोक कुमार, रूबी भूषण, डा सीमा रानी, सदानंद प्रसाद, डा सुषमा कुमारी, डा मीना कुमारी परिहार, डा लूसी कुमारी, नंदन मिश्र, अनिल कुमार पांडेय ‘अकेला’, एम राव, मोइन गिरिडीहवी, सिद्धेश्वर, श्वेता मिनी, अजित कुमार समेत पचास से अधिक कवियों-कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का मनोहारी पाठ किया।इसके पूर्व एक सार्थक ‘काव्य-कार्यशाला’ संपन्न हुई, जिसमें नव-आगंतुक कवियों और कवयित्रियों को कविताई सिखाई गई। अलंकार के सुप्रसिद्ध आचार्य पं रामरक्षा मिश्र ने प्रतिभागियों को रस, छंद और अलंकार के विविध रूपों में उदाहरण सहित प्रशिक्षित किया। आचार्य विजय गुंजन ने दोहा, रोला, सोरठा और कुंडलिया आदि छंदों की शिक्षा दी। सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ भी आचार्य की भूमिका में दिखे। उन्होंने मात्रिक-छंद में मात्रा की गणना की विधि बताई।पुस्तक-मेला में, नाट्य-संस्था ‘रंग समूह’ के तत्त्वावधान में ‘सिक्योरिटी गार्ड की बहाली’ नामक नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति की गई। कुमार उदय सिंह लिखित और निर्देशित इस हास्य नाटक में बेरोज़गारी से जूझ रहे नौजवानों के सामने आने वाले संकटों और समस्याओं को बहुत ही रोचक से दर्शाया गया है। अंकित कुमार, संजीव कुमार, पप्पू ठाकुर आदि कलाकारों के अभिनय को पर्याप्त सराहना मिली।