पटना, ७ सितम्बर। ‘लघुकथा’ साहित्य की एक अत्यंत प्रभावशाली विधा है। यह ग़ज़ल के शेर की तरह होती है, जो कुछ शब्दों में ही मर्म का भेदन कर जाती है। इसीलिए कथा-साहित्य में यह विधा प्रचंड गति से लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। इस क्षेत्र में पदार्पण कर रहे लेखकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह कोई कहानी या छोटी कहानी नहीं है। इसका शिल्प या गठन कहानी की तरह नहीं है। इसीलिए इसमें भूमिका अथवा चित्रण के लिए स्थान और अवकाश नहीं होता। लघुकथाकार को सीधे-सीधे ‘कथ्य’ पर आना होता है।यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आहूत हिन्दी पखवारा-सह-पुस्तक चौदस मेला के ७वें दिन आयोजित लघुकथा गोष्ठी एवं डा विनय कुमार विष्णुपुरी के लघु-कथा संग्रह ‘अमृत रस आनंद’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि श्री विष्णुपुरी एक निरन्तर गतिमान और उद्यमी लेखक हैं।इस अवसर पर, हिन्दी और मैथिली के वरिष्ठ कवि एवं भारतीय प्रशासानिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी बच्चा ठाकुर को, उनके ८०वें जन्म-दिवस पर, सम्मेलन द्वारा पुष्प-हार और अंगवस्त्रम प्रदान कर सम्मानित किया गया। सम्मेलन अध्यक्ष ने उनका अभिनन्दन करते हुए कहा कि श्री ठाकुर कवित्त-शक्ति से सर्वतोभावेन परिपूर्ण, मैथिली और हिन्दी के अत्यंत सामर्थ्यवान कवि हैं। वे लोक-मंगल की भावना रखने वाले शुद्ध-मन के साधु रचनाकार और अद्भुत वक्तृता-संपन्न मनस्वी वक्ता हैं।समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार के पूर्वमंत्री अशोक कुमार सिंह ने कहा कि वैश्वीकरण के इस काल में हिन्दी का महत्त्व बहुत ही बढ़ा है। यह संपूर्ण विश्व में तेज़ी से बढ़ रही है। यह चिंता का विषय अवश्य है कि भारत में जो स्थान इसका होना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया है। इस दिशा में हमारा अधिकाधिक प्रयास होना चाहिए। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन और प्रचार-प्रसार में साहित्य सम्मेलन का प्रयास बहुत ही सराहनीय है।पटना विश्वविद्यालय में कुलसचिव और हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो बलराम तिवारी ने कहा कि लघुकथा का सौंदर्य उसकी संक्षिप्तता में उद्देश्य की अर्थवत्ता है। यह आज के समय की मांग है। पूर्वकाल में जब सबके पास पर्याप्त समय होता था, लोग बड़े-बड़े महाकाव्य और ग्रंथ पढ़ा करते थे। बाद में लोग उपन्यास पढ़ने लगे । किंतु जब से आदमी के पास समय कम हुआ, तो वे छोटी कहानियाँ पढ़ने लगे। अब तो वह भी पढ़ने का अवकाश नहीं, ऐसे में लघुकथा का महत्त्व बढ़ा है। पटना विश्वविद्यालय में दर्शन -शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डा रमेश चंद्र सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘माँ मैं बहुत लज्जित हूँ’ शीर्षक से, डा मधु वर्मा ने ‘पद’,सिद्धेश्वर ने ‘मान सम्मान’, डा पुष्पा जमुआर ने ‘मुख्य पृष्ठ’, सीमा रानी ने ‘पेट की आग’, कुमार अनुपम ने ‘नौकरी की पात्रता’, डा पूनम आनन्द ने ‘कौआ’, विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘इंसाफ़’, डा सुधा सिन्हा ने ‘तोतली बातें’, डा अलका वर्मा ने ‘छुआ गया’, डा मीना कुमारी परिहार ‘मान्या’ ने’ज़िद्दी’, राग प्रिया रानी ने ‘अपना देश’, रौली कुमारी ने ‘प्रसाद का दान’, मुनटुन राज ने ‘फ़ासला’ तथा अजित कुमार भारती ने ‘गांधी’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन डा शालिनी पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया ।इसके पूर्व, विगत २ सितम्बर से संचालित ‘संस्कृत संभाषण शिविर’ के ६ ठे दिन आज, शिविर के मुख्य प्रशिक्षक और संस्कृत के विद्वान आचार्य डा मुकेश कुमार ओझा ने प्रतिभागियों को ‘दिवस-ज्ञान’ का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया और अभ्यास कराया।इस अवसर पर कवयित्री आराधना प्रसाद, डा प्रतिभा रानी, निर्मला सिंह, विष्णु प्रभाकर, गणेश प्रसाद, कमल किशोर कमल, सदानंद प्रसाद, चंद्रशेखर आज़ाद, बाँके बिहारी साव, गोपाल मेहता, विजय कुमार दिवाकर, राम प्रसाद ठाकुर आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।