सीनियर एडिटर -जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 08 सितम्बर ::इस वर्ष 09 सितंबर को भाद्रपद चतुर्दशी तिथि पर रहा है,इसलिए शुक्रवार को मनाया जायेगा अनंत चतुर्दशी व्रत। अनंत का अर्थ होता है “जो कभी भी अस्त ना हो यानि जो कभी भी समाप्त न हो” और चतुर्दशी का अर्थ होता है “चैतन्य रूपी शक्ति”। इसलिए इस व्रत को प्रमुखता से वैभव प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है।इस व्रत के प्रमुख देवता अनंत यानि भगवान श्रीविष्णु हैं और शेष एवं यमुना कनिष्ठ देवता है। इस व्रत की कालावधि 14 वर्ष माना जाता है। इस व्रत की शुरुआत करने के संबंध में मान्यता है कि यदि इस व्रत की कोई कथा सुनाता है, तो इस व्रत को वह कर सकता है या किसी व्यक्ति को अनंत का धागा आसानी से मिल जाता है तो वह व्यक्ति इस व्रत को शुरू कर सकता है और यह भी माना जाता है कि यह व्रत उसके कुल में शुरू हो जाता है। अनंत की धागा में 14 गांठ होते हैं जिसे पीला, लाल तथा लाल+पीला मिलाकर रेशमी धागा की पूजा की जाती है। पूजा के पश्चात धागे को पुरूष दाएं हाथ में और स्त्री बाएं हाथ में बांधते है।अनंत व्रत के धागे के 14 गांठों का भी अपना महत्त्व होता है। कहा जाता है कि मनुष्य के शरीर में 14 प्रमुख ग्रंथियां होती हैं। इस ग्रंथि के प्रतीक स्वरूप धागे में 14 गांठें बनाई जाती हैं। प्रत्येक ग्रंथि के विशिष्ट देवता होते हैं। इन देवताओं का इन गांठों पर आवाहन किया जाता है। 14 गांठों वाले धागे को मंत्र की सहायता से प्रतीकात्मक रूप से पूजा करके ब्रह्मांड के भगवान विष्णु रूपी क्रिया शक्ति के तत्व की धागे में स्थापित करके उस धागा को बाजू में बांधने से शरीर पूर्णता शक्ति से भारित हो जाता है।अनंत व्रत में यमुना जी के पूजन का भी महत्व होता है। यमुना जी की गहराई में भगवान कृष्ण जी ने कालिया रूपी क्रिया शक्ति के स्तर की रज और तम ऐसी आसुरी लहरियो का नाश किया था। यमुना जी के पानी में भगवान श्रीकृष्ण तत्व अधिक है। इसलिए व्रत में कलश के पानी में यमुना जी का आवाहन कर पानी में विद्यमान भगवान श्री कृष्ण तत्व रूपी लहरों को जागृत किया जाता। इस लहरी के जागृत करने से देह की कालिया रूपी सर्प के आकार की रज और तम लहरी का नाश करके जल तत्व से देह शुद्धि करके फिर आगे की विधि प्रारंभ की जाती है। इस लिए यह मान्यता है कि कलश पर शेष रूपी तत्व की पूजा की जाती है और भगवान विष्णु रुपी श्री कृष्ण तत्व को जागृत रखा जाता है।