पटना, १३ सितम्बर। संस्कृत अत्यंत वैज्ञानिक भाषा है। इसमें संसार का समस्त आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्ञान है। नासा के वैज्ञानिक अब संस्कृत पढ़ रहे हैं। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए संस्कृत अनिवार्य किया गया है। कंप्यूटर के लिए भी संस्कृत को सबसे उपयुक्त भाषा माना गया है। संचार विज्ञान और कंप्यूटर के युग में संस्कृत ही विश्व की भाषा बनेगी।यह विचार मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, विगत २ सितम्बर से संचालित दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष ने डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। संस्कृत में अपना व्याख्यान देते हुए, डा सुलभ ने कहा कि प्रत्येक भारतीय को अवश्य ही संस्कृत का ज्ञान होना चाहिए। इसलिए कि सबके सब संस्कृत वांगमय में स्थित संसार के महान ज्ञान को स्वयं अर्जित कर सकें।समारोह का उद्घाटन करते हुए, हिन्दी और संस्कृत के मनीषी विद्वान और संस्कृत प्रचारक डा मिथिलेश झा ने कहा कि समाज में फैली हुई इस मिथ्या धारणा ने कि “संस्कृत केवल ब्राह्मणों की भाषा है, यह केवल पूजा पाठ की भाषा है”, संस्कृत की बड़ी क्षति की है। भारत को इससे दूर किया है, जिससे देश की बड़ी हानि पहुँची है। इसी कारण से यह लुप्त होने के कगार पर पहुँच गई। कोई भी भाषा किसी समुदाय विशेष की भाषा नही होती, वह तो सर्व-सामान्य की होती है। राष्ट्र की होती है।संस्कृत संभाषण शिविर के प्रमुख आचार्य डा मुकेश कुमार ओझा ने कहा कि संस्कृत अत्यंत सरल भाषा है। संभाषण-कार्यशाला में अभ्यास के द्वारा संस्कृत में वार्तालाप का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रतिदिन आनेवाले प्रतिभागी मात्र दस दिनों में संस्कृत बोलने में सफल हो सकते हैं।दीक्षांत-समारोह में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कवि बच्चा ठाकुर, वरिष्ठ शिक्षिका निर्मला सिंह, डा सुषमा कुमारी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा पल्लवी विश्वास, डा पंकज प्रियम, सदाबहार चिंटू कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सभी प्रतिभागियों ने संस्कृत में व्याख्यान दिया। सबको प्रतिभागिता-प्रमाण-पत्र भी दिया गया।इस अवसर पर, कवि जय प्रकाश पुजारी, कृष्णरंजन सिंह, सदानंद प्रसाद, अविनय काशीनाथ पाण्डेय, रामाशीष ठाकुर, अमित कुमार सिंह,डा कुमारी लूसी, श्रीकांत व्यास, डा वीणा कुमारी, दयानंद जायसवाल, कुमारी मेनका तथा महफ़ूज़ आलम भी उपस्थित थे।