प्रियंका भारद्वाज की रिपोर्ट /‘’राष्ट्र की तरह भाषा से प्रेम करना सीखना होगा’’, मुख्य वक्ता सह हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शशि-भूषण चौधरी ने टी.पी.एस. कॉलेज के सभागाार में हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में अपने विचार को व्यक्त करते हुए कहा कि जब तक हम भारतीय अपने बच्चों का अँग्रेजी माध्यम के विद्यालयो में पढ़ाने की होड़ करते रहेंगे, तब तक हिन्दी पूर्णरूपेण अपना स्थान नहीं पा सकेगी । हमारे राष्ट्राध्यक्षों का भी यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वे हिन्दी को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठत करने का कार्य करें । इस अवसर पर उर्दू विभाग के प्रोफेसर सह प्रसिद्ध शायर अबू बकर रिज़वी ने कहा कि हिन्दी उर्दू सगी ही नहीं, जुड़वा बहनें हैं, जिनमें विभेद करना नामुमकिन-सा है । साथ ही साथ उन्होंने कहा कि पत्र-पत्रिकाओं का योगदान भाषाई क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण है। बचपन से ही पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने की आदत डालनी चाहिए । कार्यक्रम के अध्यक्ष सह प्रधानाचार्य डॉ. उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि ‘अब कथनी से ज्यादा करनी की आवश्यता है । अब हमें महाविद्यालय के स्तर से उठकर न्यायालय में भी लिखित आवेदन करना चाहिए ताकि वहाँ काम काज की भाषा हिन्दी बन सके । तभी आमनागरीक न्याय को समझ सकेगें । उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी संस्कार की भी भाषा है । मंच संचालन करते हुए प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर खाँ ने कवि केदार नाथ सिंह की पंक्तियों के माध्यम से हिन्दी के सोंधेपन की सुगंध को वातावरण में प्रवाहित कर दिया –‘’यहाँ तक कि एक पत्री के हिलाने की आवाज भी, मैं सब बोलता हूँ जरा-जरा । जब बोलता हूँ हिन्दी’’ से मंत्रमुग्ध कर दिया । हिन्दी अंतिम वर्ष के छात्र धीरज कुमार ने विभिन्न कवियों की कविताओं को लेते हुए हिन्दी के महत्व पर बहुत खुबसूरती से प्रकाश डाला। डॉ. शुचि स्नेहा ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि हिन्दी बिल्कुल ऐसी है मानो ‘हिन्द देश के निवासी सभी जन एक हो’ । इस कार्यक्रम में डॉ. श्यामल किशोर, डॉ. विजय कुमार सिन्हा, डॉ. रघुवंश मणि, डॉ.अंजलि, डॉ. नूरी, डॉ. हेमलता, डॉ. ज्योत्सना, डॉ. उषा किरण, डॉ. प्रशांत कुमार, डॉ. नूपुर, डॉ. मुकुंद, डॉ. दीपिका, डॉ. देवारती, डॉ. नूतन, डॉ. शिवम, डॉ. प्रीति, डॉ. सानंदा, एवं नंदन नीरव आदि प्राध्यापक गण मौजूद थे । छात्र-छात्राओं की भी भारी उपस्थिति रही । प्रो. अबू बकर रिज़वी(मीडिया प्रभारी)टी.पी.एस. कॉलेज, पटना