पटना ब्यूरो , १७ सितम्बर। विदुषी कवयित्री अनुपमा नाथ काव्य-कल्पनाओं से समृद्ध एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवयित्री थीं। उनके काव्य-संग्रह’हेलो! सुनो न !’ में हम उनकी अपार कवित्त-शक्ति की अनुभूति कर सकते हैं। साहित्य का संस्कार उन्हें, अपने विद्वान पिता स्व श्रीरंजन सूरिदेव से प्राप्त हुआ था, जो संस्कृत, पाली, अपभ्रंश और हिन्दी के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के साहित्यकार और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री भी थे। उनके असमय निधन से हिन्दी जगत को बड़ी क्षति पहुँची है।यह बातें, शनिवार को साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में, स्वर्गीया नाथ के श्राद्धोत्सव पर, उनके खेमनीचक स्थित ‘चंद्रनिवास’ में आयोजित श्रद्धांजलि-सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि साहित्य सम्मेलन से भी अनुपमा जी का आत्मीय संबंध था। वो सम्मेलन की संरक्षक-सदस्या तो थी हीं, उत्सवों के आयोजन में भी उनका सक्रिए सहयोग रहा करता था। विगत डेढ़ वर्षों से वो कर्क-रोग से पीड़ित थीं और अत्यंत कष्ट-प्रद उपचार प्रक्रिया से गुजर रहीं थीं।वरिष्ठ कवि डा मेहता नगेंद्र सिंह, कवयित्री डा अर्चना त्रिपाठी, कुमार अनुपम, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा सुलक्ष्मी कुमारी, कृष्णरंजन सिंह, लता प्रासर, चंदा मिश्र, सुनील कुमार दूबे, दिवंगता कवयित्री के पति सुनील कुमार मिश्र, पुत्र मयंक चंद्र और शशांक चंद्र, भ्राता आगम कुमार रंजन और संगम रंजन, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, विमल नारायण मिश्र, सुमन कुमार मिश्र, प्रशांत प्रियदर्शी, तथा अरुण नाथ मिश्र ने भी अपनी भावांजलि अर्पित की। आरंभ में साहित्यकारों और शुभेच्छुओं ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर अपनी श्रद्धा निवेदित की।इसी सभा में, आकाशवाणी पटना के अत्यंत लोकप्रिय कार्यक्रम ‘चौपाल’ में ‘बटुक भाई’ की लोकप्रिय भूमिका निभाने वाले संस्कृति-कर्मी छत्रानंद सिंह झा के निधन पर भी गहरा शोक-व्यक्त किया गया। शुक्रवार के दूसरे पहर में उन्होंने अपना पार्थिव शरीर छोड़ दिया था। आज प्रातः दीघा घाट पर उनके पार्थिव देह का अग्नि-संस्कार किया गया।