पटना, २४ सितम्बर। नियमित आंतरिक साधना से अवश्य ही शक्ति आती है। यह वह शक्ति है, जिससे मनुष्य के सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। यही साधना एक सच्चे साधक को आत्म-साक्षात्कार की आध्यात्मिक ऊँचाई तक ले जाती है। अस्तु प्रत्येक साधक को नियमित रूप से प्रत्येक दिन कम से कम एक घंटे इस्सयोग की आंतरिक साधना अवश्य करनी चाहिए।यह बातें शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय इस्सयोग समाज के तत्त्वावधान में, गोलारोड स्थित एम एस एम बी इस्सयोग भवन में आयोजित, इस्सयोग के संस्थापक और ब्रह्मलीन सदगुरुदेव के महानिर्वाण की स्मृति में प्रत्येक मास होने वाले स्मृति-पर्व में अपना आशिर्वाचन देती हुईं, संस्था की अध्यक्ष एवं सदगुरुमाता माँ विजया ने कही। माताजी ने कहा कि इस्सयोग के साधकों को प्रायः ही होने वाली दिव्य अनुभूतियाँ, उनके द्वारा श्रद्धाभाव से नियमित की जाने वाली साधना का ही परिणाम है।यह जानकारी देते हुए, संस्था के संयुक्त सचिव डा अनिल सुलभ ने बताया कि माताजी के आशिर्वचन से पूर्व सदगुरु के आह्वान की साधना के साथ आज का उत्साव आरंभ हुआ, जिसके पश्चात एक घंटे का अखंड-संकीर्तन सपन्न हुआ और इस्सयोगियों ने अपने श्रद्धा-उद्गार भी व्यक्त किए। इस अवसर पर संस्था के संयुक्त सचिव उमेश कुमार, संदीप गुप्ता, श्रीप्रकाश सिंह, लक्ष्मी प्रसाद साहू, नीना दूबे गुप्ता, किरण झा, बीरेन्द्र राय, गायत्री प्रदीप, माया साहू, राजेश वर्णवाल, राजीव कुमार तथा मंजू देवी समेत बड़ी संख्या में इस्सयोगी साधक-साधिकाओं की उपस्थिति रही। दिन के महा-प्रसाद के साथ स्मृति-पर्व का सामापन हुआ।