पटना, ३० सितम्बर। माना जाता है कि व्यंग्य कटु होते हैं। पाठकों को चूभते हैं। लेकिन लोगों को यह भी जाना चाहिए कि व्यंग्य का एक स्तर ऐसा भी होता है, जो हृदय को गुदगुदाता भी है। एक ऐसी कटाक्ष उत्पन्न करता है, जो चुभता तो है पर दुखता नहीं, मज़ा देता है। इसलिए यह मानना चाहिए कि स्वस्थ व्यंग्य, कटु व्यंग्य से अधिक प्रभावी होते हैं।यह बातें शुक्रवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभागार में अंगिका और हिन्दी के चर्चित लेखक श्रीकांत व्यास के वयंग्य उपन्यास ‘विद्रोही मुग्धानंद’ का लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि लेखक श्रीकांत व्यास व्यंग्य साहित्य में अत्यंत मूल्यवान कार्य कर रहे हैं। यह पुस्तक जीवन के विभिन्न स्तरों को रोचक ढंग से स्पर्श करती है। पाठकों के लिए इसमें पर्याप्त सामग्री मिलती है।समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि व्यक्ति-व्यक्ति में अंतर होता है। व्यक्ति के स्वभाव और प्रवृतियों का उसके कार्यों पर प्रभाव पड़ता है। वह व्यक्ति साहित्यकार भी हो सकता है या कोई अधिकारी। इसलिए व्यक्ति का अच्छा होना आवश्यक है। आज का साहित्य आज के समाज से प्रभावित हो रहा है। यह स्वाभाविक है। किंतु साहित्य ऐसा हो जो समाज को प्रभावित करे।वरिष्ठ कथाकार और बिहार के पूर्व गृह-सचिव जियालाल आर्य ने कहा कि व्यंग्य लिखना और व्यंग्य करना जोखिम भरा काम है। श्रीकांत व्यास साहित्य में जोखिम उठाने वाले कथाकार हैं। लोकार्पित पुस्तक के नायक मुग्धानंद विद्रोही स्वभाव के हैं। उनके विचार और व्यवहार जो स्थितियाँ प्रकट करते हैं, वह पढ़ने लायक है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, बाँके बिहारी साव, डा बी एन विश्वकर्मा, बलराम प्रसाद सिंह, शायरा तलअत परवीन तथा लता प्रासर ने भी अपने विचार व्यक्त किए और लेखक को शुभकामनाएँ दीं।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘मुँह मत लगाइए’, सिद्धेश्वर ने ‘अंतिम प्रश्न’, डा पुष्पा जमुआर ने ‘मीनारों की खिड़कियाँ’, जय प्रकाश पुजारी ने ‘शक’, कुमार अनुपम ने ‘नाटक में नाटक’, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने ‘हालचाल’,सदानंद प्रसाद ने ‘घर घर की कहानी’, चितरंजन भारती ने ‘बाज़ार का सच’ तथा ई अशोक कुमार ने ‘नियम जानें’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर, कवि अजित कुमार भारती, सुखदेव प्रसाद, रामाशीष ठाकुर, अरविंद कुमार, प्रमोद कुमार आर्य, अमन वर्मा, अमित कुमार सिंह, श्रीबाबू आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।