गोपालगंज संवाददाता, विवेक राज /गोपालगंज/ बैल मालिक के लिए उसी के दो बैल गले के फांस बन गया है। अब नाही उसका बैल उसका रहा ,नाही उसे छोड़ सकता है और नाही उसके पास बैलों को चारा खिलाने के लिए उतने पैसे है। आलम यह है कि पिछले 9 माह से वह अपने ही बैलो से बेगाना होकर बिना काम करवाये बैठाकर उसका देख भाल कर रहा है। क्योंकि उसे 9 माह पहले यादोपुर थाना पुलिस ने शराब के साथ बैलगाड़ी सहित गिरफ्तार किया था। जिसके बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दी और दोनों बैल और बैलगाड़ी को जब्त कर ली थी। अब बैलों को थाने में बिठाकर भला कौन सानी-पानी देता।लिहाजा पुलिस ने अभियुक्त के कंधो पर ही दोनों बैलो की जिम्मेदारी सौंप दी और उसके भाई के नाम से जिम्मेनामा दे दी। मामला बेतिया जिले के नौतन प्रखण्ड के भगवानपुर गाँव निवासी ओमप्रकाश यादव की है। ओमप्रकाश का कहना है कि पुलिस ने जब बैल और बैलगाड़ी को जब्त कर ली तब बैल और बैलगाड़ी उसी की हुई और यह बैल अब मेरा नही रहा। बावजूद मैं इस बैल की 9 माह से पुलिस के डर से देख भाल कर रहा हूं और यह बैल हमारे लिए मुशीबत बन गई है। 9 माह में 50 हजार से ज्यादा खर्च कर चुके है लेकिन अभी तक एक रुपये भी सरकार द्वारा नही दिया गया।ओमप्रकाश का कहना है कि इस बैल की नीलामी के लिए 60 हजार रुपये रखे गए है जिसे दे पाना सम्भव नही है। अब या तो सरकार हमारे बैल को मुक्त कर दे या फिर इसका खर्च देंकर अपना बैल ले जाये। वही इस संदर्भ में थानाध्यक्ष विक्रम कुमार ने बताया कि बैलों की देख भाल के लिए उसे 10 हजार के महीना थाना द्वारा दिया जाता है। बहरहाल इसमें कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच ये तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा। बताया जाता है कि यादोपुर थाना पुलिस ने पिछले 25 जनवरी को गुप्त सूचना के आधार पर रामपुर टेंगराही गांव के समीप बांध पर एक बैलगाड़ी से पशूओ के चारा (घास) में छिपाकर रखे शराब को बरामद किया था और चार लोगों को अभियुक्त बनाया था जिसमे ओमप्रकाश यादव भी शामिल था। ओमप्रकाश समेत तीन लोगो को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेज दी। जबकिं एक अभियुक्त अभी भी फरार है। तत्कालीन थानाध्यक्ष मिथिलेश प्रसाद सिंह के बयान पर मामला दर्ज कर एंटी लिकर टास्क फोर्स के तहत कार्यवाई कर इस बैलगाड़ी को शराब तस्करी के मामले में जब्त किया था। इस बीच पुलिस ने दोनों बैल को अपने पास न रख अभियुक्त के कंधों पर डाल दिया लेकिन वह अभियुक्त होने के कारण उसके नाम से नही बल्कि उसके भाई के नाम से जिम्मेनामा कागज बनाया गया। ओमप्रकाश का कहना है कि कागज मेरे भाई के नाम और बैल को मेरे हवाले कर दिया गया। जेल जाने के बाद पत्नी किसी तरह छः माह तक बैलो की देख भाल की जब जेल से आया तो अभी तक हम लोग ही देख भाल चारा पानी कर रहे है। इन बैलो के कारण नाही कही जा पा रहे है और नाही इससे काम ले रहे है। काम अगर लेंगे तो इसे कोई नुकसान होगा तो इसकी भी जिम्मेदारी हमारी ही होगी और उसका भी हमको जवाब देना पड़ेगा या फिर मै पशु क्रूरता अधिनियम के तहत फंस भी सकता हूँ।ओमप्रकाश के जेल जाने के बाद उसकी पत्नी तीन मासूम बच्चों के साथ उस बैल की भी किसी तरह देख भाल करने लगी और दूसरे के अमानत अपने कंधों पर रख कर्ज लेकर बैलों की देखभाल चारा पानी देने लगी। पुलिस महकमे ने बैलों और बैलगाड़ी की चिंता से मुक्ति पाने के लिए गोपालगंज के डीएम को रिपोर्ट दी। जहाँ से बैलों और बैलगाड़ी की कीमत निर्धारित करते हुए इनकी नीलामी की तारीख भी तय कर दी। लेकिन, 60 हजार रुपए में इन्हें खरीदने के लिए कोई सामने नहीं आया। लिहाजा ये बैल अभी आरोपित के जिम्मे ही है।