सौरभ निगम की रिपोर्ट /लखनऊ के विभूति खण्ड, गोमती नगर में स्थित शौर्य , पराक्रम, बलिदान एवं मानवीय मूल्यों के स्वर्णिम व गौरवमयी इतिहास से परिपूर्ण विश्व व के सबसे बड़े एवं पुराने अर्धसैनिक बल के रूप में स्थापित सीआरपीएफ के मध्य सेक्टर, सीआरपीएफ कार्यालय में 29 सितम्बर 2022 को हिंदी दिवस का भव्य आयोजन किया गया। इससे पहले हिंदी पखवाड़ा मनाए जाने के दौरान विभिन्न हिंदी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था। इन प्रतियोगिताओं के अन्तर्गत अधिकारियों के लिए लागू हिंदी डिक्टेशन योजना प्रतियोगिता में श्री सुनील कुमार, पुलिस उप महानिरीक्षक ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस अवसर पर श्री कुमार ने हमारे संवाददाता को बताया कि आजादी के बाद हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया। हिन्दी को वैधानिक रूप से भारत संघ की राजभाषा के रूप में अपनाने का काम तो आजादी के बाद शुरू किया गया, परन्तु आजादी से पहले ही हिन्दी इस बहुभाषी देश के अलग-अलग भाषा बोलने वालों के बीच एक सम्पर्क भाषा के रूप में प्रचलित थी। ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रान्ति का बिगुल बजाने वाले अलग-अलग भाषा बोलने वाले क्रान्तिवीरों की सम्पर्क भाषा हिन्दी ही थी। हमारे देश के महान संतों, ऋषि -मुनियों ने अपने-अपने उपदेशों में साधारण जन मानस की भाषा का प्रयोग किया। हिन्दी आज देश की राजभाषा ही नही बल्कि देश की आत्मा है क्योंकि किसी भी भाषा के साथ उस देश की संस्कृति, परम्पराएं तथा सामाजिक रीति-रिवाज जुडे होते हैं । पूर्वजों से विरासत में मिली अपनी परम्पराओं, रीति-रिवाजों तथा समृद्ध संस्कृति की रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है, क्योंकि जो व्यक्ति, समाज अथवा देश अपनी संस्कृति की रक्षा नही कर पाता, कालान्तर में वह संस्कृति नष्ट हो जाती है। आजादी के बाद हिन्दी को इसकी सरलता, सहजता, सर्वव्यापकता तथा सम्पर्क भाषा के रूप में महत्वपूर्ण योगदान देने की वजह से इसे भारत संघ की राजभाषा के पद पर आसीन किया गया। देश के सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए ही हिन्दी को संवैधानिक रूप से अमल में लाया गया। देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते इस दृष्टि से हमारा यह नैतिक दायित्व बनता है कि देश की राजभाषा नीति का सत्यनिष्ठा पूर्वक पालन करें और इस संबंध में भारत सरकार द्वारा बनाए गए नियम, अधिनियमों की अपेक्षाओं के अनुसार अपना अधिक से अधिक कार्य हिन्दी में करें। उन्होंने आगे बताया कि संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा के रूप में अंगीकार किया और तब से ही प्रतिवर्ष 14 सितंबर ’हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। संविधान सभा द्वारा सौंपे गए संवैधानिक और प्रशासनिक उत्तरदायित्वों तथा संविधान की भावना के अनुरूप राजभाषा हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और इसके प्रयोग को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए जाते हैं। अत्यंत हर्ष का विषय है कि इस वर्ष हिंदी दिवस का आयोजन माननीय गृह एवं सहकारिता मंत्री जी की अध्यक्षता में भव्य एवं गरिमामयी स्वरूप में पहली बार दिल्ली से बाहर सूरत (गुजरात) में किया गया। श्री कुमार ने आगे कहा कि सीआरपीएफ में भारत के प्रत्येक क्षेत्र के जवान भर्ती होते हैं, इसलिए मुख्यतः हमारी एक दूसरे से संवाद की भाषा हिंदी होती है। जहां तक मैं समझता हूॅं हमारे बल का प्रत्येक सदस्य हिंदी को बोल एवं समझ लेता है। इसलिए हम सभी की यह जिम्मेदारी है कि हम कार्यालयीन कामकाज हिंदी में ही करें, जिसका पूरा प्रयास उन्होंने किया है। इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी स्वंय राजभाषा नियमों से परिचित हों और इसके प्रावधानों को वास्तविक रूप से लागू करें, क्लिष्ट हिंदी का प्रयोग करने से बचें व हिंदी में कार्य करने का उचित वातावरण बनाएं। स्वयं हिंदी में लिखें व आपसी संवाद में इसका यथोचित प्रयोग कर गौरवान्वित महसूस करें। इस अवसर पर उन्होंने जानकारी दी कि माननीय प्रधानमंत्री जी के स्मृति विज्ञान संबंधी प्रेम और प्रयोग से प्रभावित होकर राजभाषा विभाग ने गत वर्ष से हिंदी के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बारह ’प्र’ की रूपरेखा और रणनीति पर काम करना शुरू किया है, जिसमें महत्वपूर्ण स्तंभ हैं ”प्रेरणा, प्रोत्साहन, प्रेम, पुरस्कार, प्रशिक्षण , प्रयोग, प्रचार, प्रसार, प्रबंधन, प्रोन्नति, प्रतिबद्धता और प्रयास।“ इन्हीं बारह ’प्र’ की रणनीति को आत्मसात करते हुए श्री कुमार कार्यालय के अधिक से अधिक कार्य को मूल रूप से सरल एवं सहज हिंदी में स्वंय तो कर कर ही रहे हैं और इसके साथ ही दूसरों को भी भारत संघ की राजभाषा नीति को अनुकरण करने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित कर रहे हैं।