पटना, १२ अक्टूबर। हिन्दी जिनके प्राणों में बसती थी और जो उसके लिए सदैव प्राण त्यागने को तत्पर रहते थे, ऐसे कवि साहित्यकार थे पं जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी। खड़ी बोली हिन्दी की प्रथम पीढ़ी के महान कवियों और भाषाविदों में अग्रपांक्तेय विद्वान पं चतुर्वेदी, हिन्दी के एक चलते-फिरते महाविद्यालय थे। एक क्षण के लिए पास आए लोग भी हिन्दी का कुछ नया सीख कर जाते थे। उन्हें ही बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का प्रथम सभापति होने का गौरव प्राप्त है। वहीं दूसरी ओर डा कुमार विमल हिन्दी काव्य-साहित्य में सौंदर्य-शास्त्र के अन्वेषण और प्रतिपादन के विशिष्ट अवदान के लिए स्मरण किए जाते हैं।यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन मेंआयोजित, सम्मेलन के प्रथम सभापति पं जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी और डा कुमार विमल के जयंती समारोह और कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि चतुर्वेदी जी अपनी पीढ़ी में अखंडित भारत के श्रेष्ठ साहित्यकारों में तो गिने ही जाते थे, अत्यंत लालित्यपूर्ण हास्य-रस और व्यंग्य के श्रेष्ठतम साहित्यकार माने जाते थे। काव्य में छंद के प्रति विशेष आग्रह रखने वाले चतुर्वेदी जी गद्य साहित्य में भी रोचकता और लालित्य के पक्षधर और हास्य-व्यंग्य में फूहड़ता तथा व्यक्तिगत आक्षेप के प्रबल विरोधी थे।डा सुलभ ने कहा कि हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान रखने वाले विद्वान समालोचक डा कुमार विमल काव्य में सौंदर्य-शास्त्र के महान आचार्य तो थे ही, अपने समय के एक जीवित साहित्य-कोश भी थे। उनका संपूर्ण जीवन, साहित्य और पुस्तकों के साथ अहर्निश जुड़ा रहा। वे प्रायः ही पुस्तकों से घिरे और लिखते-पढ़ते देखे जाते थे। उनका जीवन साहित्य का पर्यायवाची था।वरिष्ठ कवि और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी डा उपेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि साहित्य में हमारी अधीरता बढती जा रही है। नई पीढ़ी को चतुर्वेदी जी और कुमार विमल जैसे साहित्यकारों से धैर्य और साधना की प्रेरणा लेनी चाहिए।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, कुमार विमल जब बिहार हिन्दी प्रगति समिति के अध्यक्ष थे तब उनसे मेरा गहरा अंतरग संबंध बन गया। वे अद्भुत प्रतिभा के साहित्यकार थे। उन्होंने जो लिखा वह मानक माना गया। वे सौंदर्य-शास्त्र के विशेषज्ञ चिंतक और आलोचना साहित्य के शिखर पुरुष थे।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा पुष्पा जमुआर, बच्चा ठाकुर, प्रो इंद्रकांत झा, डा मेहता नगेंद्र सिंह, तथा प्रो सुशील कुमार झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। चर्चित कवयित्री आराधना प्रसाद, शायर रमेश कँवल, ब्रह्मानन्द पांडेय, डा ओम् प्रकाश जमुआर, शमा कौसर, डा मेहता नगेंद्र सिंह, बच्चा ठाकुर, शमा कौसर ‘शमा’, मोईन गिरीडीहवी, पं गणेश झा, जय प्रकाश पुजारी, ई अशोक कुमार, कमल किशोर ‘कमल’, दा प्रतिभा रानी, कुमार गौरव, अर्जुन प्रसाद सिंह, ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन डा शालिनी पांडेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।डा नागेश्वर प्रसाद यादव, बाँके बिहारी साव, ज्ञानेश्वर शर्मा, रामाशीष ठाकुर, ऋतु सिंहा, प्रेम अग्रवाल, रवींद्र कुमार, अजीत कुमार भारती,दुःख दमन सिंह, अमन वर्मा, अश्विनी कुमार कविराज आदि सुधी श्रोता उपस्थित थे।