पटना, १६ अक्टूबर। आत्मा जब आनंद की अवस्था में होती है, तब वह गाती और गुनगुनाती है। उसके अंतस से जीवन के नवगीत भी तभी फूटते हैं। और आनंद की सुगंधित भूमि से उपजे गीत लोक-मंगल के सर्जक होते हैं। तभी ‘गीतांजलि’ जैसी कालजयी कृतियाँ संसार को प्राप्त होती हैं।यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कवि कमल किशोर ‘कमल’ के काव्य-संग्रह ‘आओ ! कुछ गुनगुनाते हैं” के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि लोकार्पित पुस्तक के कवि जीवन के सार तत्त्व का आस्वाद पा चुके एक प्रतिभा संपन्न रचनाकार हैं। आनंद की अपनी अनुभूतियों को कवि ने अपनी रचना-यात्रा का पाथेय बनाया है, जो इनकी सबसे बड़ी पूँजी और शक्ति भी है। यह कवि समाज की समस्याएँ ही नहीं गिनाता बल्कि समस्याओं का समाधान भी समाज के विराट सदन में रखता है। जो समाधान प्रस्तुत नहीं करता वह साहित्य नहीं हो सकता। इसीलिए साहित्यकार राष्ट्र-पुरुष होता है।समारोह की मुख्य अतिथि और बिहार की पूर्व उप मुख्यमंत्री रेणु देवी ने कवि को अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ दीं और कहा कि कोई भी व्यक्ति जीवन के सभी कार्य पूरा नहीं कर पाता है। एक कवि भी अपनी कविता पूरी नहीं कर पाता। यदि वह ऐसा कर पाता तो फिर उसे दूसरी कविता लिखने की भावना नहीं जगती। वह अनवरत लिखता रहता है, क्योंकि जीवन की तरह कविता अंत-अंत तक अधूरी रहती है।पुस्तक का लोकार्पण करते हुए हिन्दी प्रगति समिति, बिहार के अध्यक्ष और ‘बिहार-गीत’ के रचनाकार वरिष्ठ कवि सत्य नारायण ने कहा कि जब हम बहुत उदास हो जाते हैं, और जब अपने भीतर झांकते हैं, अपने मन से जुड़ते हैं, तो हमें गुनगुनाने की इच्छा होती है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कवि मधुरेश नारायण, जयंत किशोर वर्मा, संगीता वर्मा, डा अर्चना त्रिपाठी और चंदा मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ लोकार्पित पुस्तक के कवि कमल किशोर ‘कमल’ ने किया। उन्होंने पुस्तक के शीर्षक गीत समेत तीन कविताओं का पाठ किया। डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल का पाठ करते हुए कहा कि- “अभी तो सिर्फ़ तुम हो और मै हूँ/ज़माना बीच में आए तो क्या हो? । गीत के चर्चित कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने कहा कि – “राग-रंग का मधुर मिलन है, ज्यों कंचन -सोहागा/ रूप ये पाने को ही कदाचित मेरा भाग हो जागा/ इस पर एक पल में मैंने सौ-सौ बार है हारा/ कितना सुंदर रूप तुम्हारा”। शायरा तलअत परवीन का कहना था कि शेर कहने की ख़ातिर मैन घंटों जाली शेर तब एक हुआ सोंचते सोंचते/ उसने देखा मुझे तो खिला फूल सा / पास वह आ गया सोंचते-सोंचते ।”वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा ओम् प्रकाश जमुआर, शायरा शमा कौसर ‘शमा’, अपराजिता रंजना, डा अर्चना त्रिपाठी, श्रुतकीर्ति अग्रवाल,अश्मजा प्रियदर्शैनि, जय प्रकाश पुजारी, विनोद किसलय, डा सुषमा कुमारी, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, सीमा वर्मा, मोईन गिरिडिहवी, ई अशोक कुमार, संतोष कुमार शर्मा, वीणा कुमारी, रवि श्रीवास्तव, शशिकान्त कुमार, बंसल गोयल, रवि श्रीवास्तव, लता प्रासर, आयुष कुमार, अर्जुन प्रसाद सिंह, अजित कुमार भारती आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ कर उत्सव को सारस्वत गरिमा प्रदान की।इस अवसर पर डा बी एन विश्वकर्मा, शशि भूषण कुमार, प्रवीर कुमार पंकज, राजेश शुक्ला, डा वीरेंद्र कुमार दत्त, बाँके बिहारी साव, अंकेश कुमार, विनोद कुमार राय, मगंदेव नारायण सिंह आदि बड़ी संख्या में सुधी श्रोता उपस्थित थे।मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया ।