पटना, ७ नवम्बर। हिन्दी के सुविख्यात समालोचक डा मैनेजर पाण्डेय के निधन पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सोमवार को एक शोक-गोष्ठी आयोजित हुई, जिसमें उनके निधन को साहित्यालोचन की भारी क्षति बताया गया।शोक-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि यों तो डा पाण्डेय, साहित्य में एक विचार-धारा-विशेष के पक्षधार थे, किंतु हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में उनके योगदान को सदा आदर की दृष्टि से देखा जाएगा। वे हिन्दी-जगत में बिहार के गौरव थे। उनके निधन से सम्मेलन मर्माहत है।वरिष्ठ कवि और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी बच्चा ठाकुर ने कहा कि, आलोचना-साहित्य में डा नामवर सिंह के बाद यदि किसी दूसरे साहित्यकार का नाम लिया जाएगा तो वह मैनेजर पाण्डेय ही हो सकते हैं। उनकी विशेषता यह थी कि उन्होंने साहित्य का समाजीकरण किया। भारत के आध्यात्मिक दर्शन को उन्होंने सामाजिक संदर्भ में देखा और प्रस्तुत किया। अपना शोक प्रकट करते हुए, दूरदर्शन बिहार के पूर्व कार्यक्रम-प्रमुख और साहित्यकार डा ओम् प्रकाश जमुआर ने कहा कि पाण्डेय जी एक ज़िंदा आदमी थे, किंतु अपने युवा पुत्र के खो देने से वे टूट से गए थे। पुत्र-शोक कठोर-मन को भी तोड़ डालता है। यह साहित्य ही था, जिसने उन्हें शोक से उबारा और वो पुनः साहत्यलोचन में प्रवृत हुए।शोक प्रकट करनेवालों में कुमार अनुपम, सुनील कुमार दूबे, डा पूनम आनंद, शालिनी पाण्डेय, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, रेखा भारती के नाम सम्मिलित हैं।