CIN ब्यूरो-सतीश कुमार मिश्रा के कलम से /ब्रजकिशोर जी की मौत से सब स्तब्ध और मर्माहत हैं.गीतकार, लोकगायक और कवि ब्रजकिशोर दुबे की असामयिक मौत से सब स्तब्ध हैं। क्षण भर की मुलाकात से किसी पर अविस्मरणीय छाप छोड़ने वाले दुबे जी का इस तरीके से जाना सबको मर्माहत कर गया है। बाथरूम में जिस स्थिति में उनका शव मिला है, किसी को यकीन नहीं हो रहा है कि कहीं से भी यह मामला खुदकुशी का है।कल शाम मैं अपने दफ्तर में बैठा था। दो लोगों की अनुपस्थिति की वजह से मेरी कुछ व्यस्तता अधिक थी, इसी बीच मित्र और शायर गुलरेज शहजाद ने शाम को मोतिहारी से कॉल किया और यह खबर दी। शव कहां और किस स्थिति में मिला, इसकी भी मुकम्मल खबर दी। फिर, तुरंत बिंटी जी ने भी कॉल किया और दुख जताया। फिर तो, फोन की घंटियां लगातार बजती रहीं…। मैं भी बेचैन था। एक तो शाम का वक्त -अखबार की अत्यंत जवाबदेही वाला समय, दूसरा, ब्रजकिशोर जी की मौत के बारे में कुछ और जानने की उत्कंठा। काम भी करता रहा और पटना के मित्रों को फोनियाता भी रहा। लेकिन, प्राथमिक जानकारी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।मंगलवार की सुबह सबकुछ स्पष्ट हुआ कि पाटलिपुत्र थाने के केसरी नगर की अजंता कॉलोनी में उनके मित्र और शिष्य के किराये के फ्लैट के बाथरूम में उनका शव मिला है। दोनो पैर कई जगह बांधे हुए थे। फाइबर की कुर्सी पर कमर के नीचे का हिस्सा पड़ा था और पानी भरे टब में उनका सिर डूबा था। शव की स्थिति औंधे मुंह वाली थी। वहां से सुसाइड नोट मिलने की बात भी कही जा रही है, जिसमें उनके मित्र का कोई हाथ इस घटना में नहीं होने बात लिखी गई है। लेकिन उनके घर वाले यानी उनकी पत्नी, बेटी -दामाद और छोटा बेटा मामला खुदकुशी का नहीं मानते। वे इसे हत्या मान रहे हैं। पुलिस भी इस एंगल को ध्यान में रखकर जांच कर रही है।
ब्रजकिशोर जी से हमारा बहुत पुराना संबंध रहा है। 1971-72 से मेरा संबंध उनसे रहा। 1977 में जब मैं पटना गया, तो उनसे मेरा जुड़ाव और गहरा गया। उस समय वे पटना विवि से एल एल बी कर रहे थे। फिर, वह पुनाईचक मुहल्ले में आ गए और मैं पहले से ही वहां रह रहा था। अब खूब महफिल जमती। आकाशवाणी से उनका जुड़ना।, कवि सम्मेलनों में शिरकत करना सब सामने की बात है। भोजपुरी लोक गायन में स्थापित होने तक हम साथ – साथ रहे। 1982 के बाद मेरा काशी हिंदू विवि में दाखिला लेने के बाद उनसे मिलना जुलना थोड़ा कम हो गया, लेकिन बातचीत समय समय पर होती रही। पत्रकारीय जीवन में प्रवेश के बाद भी कहीं न कहीं मुलाकात होती रही। गया में मैं हिन्दुस्तान में ब्यूरो चीफ था, तो वे बौद्ध महोत्सव में बतौर लोक गायक पहुंचे, तो कायदे से भेंट हुई। जमकर हंसी – ठिठोली हुई। 2018 में 01 मई को हमलोगों ने भोजपुरी साहित्य और शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा था। उसमें भी उन्हें आमंत्रित किया गया था और वे पहुंचे। बीच में कोरोना ने व्यवधान डाल दिया। उनसे मुलाकात नहीं हुई। फिर, इस हादसे में उनका अंत हो गया।कुछ भी हो, ब्रजकिशोर भाई, आप मेरे सहित अपने चहेतों के दिलों में सदैव यूं ही बने रहेंगे। आप कभी विस्मृत नहीं हो पाएंगे।सादर नमन! भावपूर्ण श्रद्धांजलि!