शैलेश तिवारी -सीनियर एडिटर /विशेष राज्य दर्जा अभियान समिती द्वारा तिरंगा यात्रा का आयोजन वीरचन्द पटेल पथ पर किया गया तत्पश्चात् बी० जे० पी० कार्यालय के गेट पर कार्यकर्ता विशेष दर्जा के माँग को लेकर बैठ गये। समिति के अध्यक्ष संजय सिसोदिया ने बताया कि जब विशेष दर्जा का परिकल्पना देशभक्तों द्वारा 1949 में ही किया गया, जिसे संविधान में अनुच्छेद 371 के रूप में दर्ज है। सर्वप्रथम 1949 में गुजरात और महाराष्ट्र को विशेष दर्जा दिया गया। उस समय विशेष दर्जा के लिए कोई मापदण्ड नहीं था। परिकल्पना यह थी कि जो राज्य या क्षेत्र पिछड़े होगे उन्हें केन्द्र से मदद करके आगे बढ़ाया जायेगा। जब विशेष दर्जा प्राप्त राज्य आगे बढ़ जायेंगे तो उनसे वापस लेकर फिर किसी अन्य पिछड़े राज्य को दिया जायेगा। आगे चलकर मापदण्ड तय कर दिया गया अन्तराष्ट्रीय सीमा से सटा हुआ हो, जनजाती आबादी हो आर्थिक आय सबसे कम हो। बिहार इसमें से भी एक तिहाई मापदण्ड पूरा करता है। एक तिहाई से सरकार बन सकती है तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिल सकता है। ये मापदण्ड गाडगिल कमीशन का था। वर्तमान में विशेष दर्जा की जिम्मेवारी नीति आयोग का दी गयी है। उसने मापदण्ड रखा है सिर्फ पर्वतीय भू-भाग को विशेष दर्जा मिल सकता है, अर्थात बिहर के लिये जानबुझकर पूर्ण रूप से ब्रेक लगा दिया गया है। बिहार को और ज्यादा आशा इसलिये बढ़ गयी है कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री स्वयं गुजराती है। गुजरात कोई मापदण्ड पूरा नहीं करता था फिर भी सभी राज्यों ने समर्थन किया। अब आप बिहार को विशेष दर्जा प्रदान करें। जबतक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता हमारा आन्दोलन चलता रहेगा। आगे चलकर ये आन्दोलन भारत के अन्य राज्यों एवं दिल्ली में होगा। “आन्दोलन से कानून बनता है” आन्दोलन में मुख्य रूप से राकेश इन्द्रपुरी, धीरज सिंह, गोविन्द जी, सोनू कुमार सिंह, कुणाल किशोर, अरुण सिंह, प्रीती सिंह, अमर चौधरी, बेबी यादव अखिलेश्वर नाथ पाठक, रीना पीटर, धर्मवीर यादव, बिहारी बाबु आदि लोगो ने भाग लिया.